वर्तमान में यह बावड़ी रणसी गांव के पूर्व जागीरदार परिवार के स्वामित्व में है और इस बावड़ी के प्रांगण में पूर्व जागीरदार की पुत्र कुंवर सवाईसिंह चांपावत ने मारवाड़ी घोड़ों की नस्ल सुधारने हेतु जैसा स्टड फ़ार्म के नाम से एक अश्वशाला खोल रखी है | इस बावड़ी और रणसी गांव के महल के निर्माण को लेकर भूतों से जुड़ी एक रोचक कहानी प्रचलित है |
गांव वालों के अनुसार मारवाड़ के शासक रिडमल के पुत्र चांपाजी को कापरड़ा गांव की जागीर मिली थी | किसी कारण कापरड़ा गांव को अशुभ मानकर चांपाजी के पुत्र भैरूदासजी रणसी गांव चले आये और यही रहने लगे | भैरूदासजी के पुत्र जैसाजी जोधपुर राज्य की सैनिक सेवा में थे, एक बार जब वे रणसी गांव आ रहे थे तब गांव से कुछ दूर चिरढाणी गांव की नटयाली नाडी (छोटा तालाब) पर वे अपने घोड़े को पानी पिलाने के लिए रुके | तभी वहां उन्हें एक भूत मिला और उससे उनकी भिडंत हो गई | जैसाजी ने भूत को पछाड़ दिया और उसकी चोटी पकड़ घसीटने लगे, तब भूत छोड़ने के लिए गिडगिडाने लगा, जैसाजी ने भूत को छोड़ने के लिए शर्त रखी कि उन्हें एक महल और बावड़ी बनवानी है, उसे बनवाने में सहायता करे तभी छोडूंगा | भूत ने भी शर्त रखी कि वह मदद करेगा – दिन में आपके आदमी जितना काम करेंगे रात में हम भूत उसकी सौ गुना कर देंगे पर यह बात हम दो के अलावा किसी दूसरे व्यक्ति को पता नहीं चलनी चाहिए, जिस दिन आपने किसी को बता दिया हम काम अधुरा छोड़ देंगे |
शर्त के अनुसार बावड़ी व महल का काम शुरू हुआ | हर कोई हैरान था कि दिन में जितना काम हुआ, रात में उससे कई गुना काम हो जाता है | रात में लोगों को निर्माण कार्य की तरफ से अजीब आवाजें पत्थर तोड़ने की आवाजें सुनाई देती थी | लेकिन ठाकुर से पूछने की हिम्मत कोई नहीं कर पाता | एक दिन ठकुरानी ने इन आवाजों के बारे में ठाकुर से पूछा और ना बताने पर वह रूठ गई | आखिर ठाकुर साहब ने भूतों वाली बात बता दी | बस फिर क्या था भूतों ने काम अधुरा छोड़ दिया | बाकी बचा काम किसी तरह ठाकुर ने पूरा करवाया | बावड़ी का निर्माण कार्य शुरू करने से पहले भूतों ने भैरूं बाबा के देवालय की स्थापना भी करवाई जो आज भी जहाँ से बावड़ी की सीढियाँ शुरू होती है, वहां दोनों तरफ कलात्मक पत्थरों से निर्मित मौजूद है और गांव वाले वहां भैरूंजी महाराज की पूजा अर्चना करते हैं | इनके बारे में कहा जाता है कि रणसी गांव का कोई भी व्यक्ति कहीं भी जन्में उसे एक बार यहाँ धोक लगाने अवश्य आना पड़ता है | आज भी रणसी गांव के प्रवासी महाजन जिनके पूर्वज वर्षों पहले गांव छोड़ शहरों में बस गये उनके वंशज इस भूत बावड़ी पर आते हैं और भैरूंजी महाराज को धोक लगाते हैं |