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History of Sankhla Parmar सांखला पंवार (परमार) राजपूतों का इतिहास

 History of Sankhla Parmar सांखला पंवार (परमार) राजपूतों का इतिहास 

सांखला परमारों की एक शाखा है। वि.स.1318 के शिलालेख में शब्द शंखकुल का प्रयोग किया गया है। धरणीवराह पुराने किराडू का राजा था। धरणीवराह के मारवाड़ भी अधीन था। धरणी का पुत्र बाहड़ था जिसके दो पुत्र प्रथम का नाम सोड व दूसरा बाघ था। सोड के वंशज ‘सोडा' परमार कहलाए । बाघ जैचन्द पडिहार के हाथों युद्ध में मारा गया। उसका पुत्र वैरसी पिता की मौत का बदला लेने की फिराक में था। उसने ओसियां की सचियाय माता से वर प्राप्त कर पिता की मृत्यु का बदला लिया। वह ओसियां सचियाय माता के गया जहाँ नैणसी लिखते हैं कि माता ने उसे दर्शन दिए और शंख प्रदान किया, तभी से वैरसी के वंशज सांखला कहलाने लगे। इसने जैचन्द के मूंघियाड़ के किले को तुड़वा कर रूण में किला बनवाया तब से ये राणा कहलाने लगे। इसका पुत्र राजपाल था जिसके तीन पुत्र जिनके नाम छोहिल, महिपाल और तेजपाल था।

छोहिल के पुत्र पालणांसी के वंश में चाचग हुआ। चाचग ने मांडु के सुल्तान को पराजित कर उसके नगारा निशान छीन लिए जिससे उसके वंशज नादेत निशाणेत कहलाए। उसका पुत्र सोहड़ भी वीर था। महाराणा मोकल ने इन परमारों में विवाह किया। महाराणा कुम्भा इनके दोहिते थे। आमेर के राजा पृथ्वीराज के प्रधान हदाजी परमार भी इसी वंश के थे। नागौर का राज्य जब राजा मानसिंह आमेर के अधिकार में आया तो उस वंश के बलकरण को रूण सहित 84 गांवों की जागीर दी जो कि उनकी सेवा में था। महिपाल का पोता उदगा पृथ्वीराज चौहान के सामन्तों में था। राजपाल के पुत्र महिपाल के बेटे रायसी ने रूण आकर जांगलू चौहानों को हरा अपना राज कायम किया। इसने अपने नाम पर रायसीसर बसाया। ये सांखले रूणेचे सांखले कहलाये।

देवीसिंह मंडावा द्वारा लिखित पुस्तक "क्षत्रिय राजवंशों का इतिहास" से साभार 

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