History of Umat Parmar Rajput : उमट परमार राजपूतों का इतिहास
उमट परमार इस वंश के राजगढ व नरसिंहगढ पहले एक ही संयुक्त राज्य थे। यही कारण है कि आज तक इन दोनों राज्यों के भाग एक दूसरे में अवस्थित हैं। यहाँ के शासक परमार वंश के आदि पुरुष राजा परमार के मुंगराव के वंशज हैं।
राजा मुंगराव की बड़ी रानी से उमरसी और सुमरसी नाम से दो पुत्र उत्पन्न हुए किन्तु अवस्था में छोटे होने के कारण राज्य के उत्तराधिकारी नहीं बनाये गये । राजा मुंगराव ने अपने बड़े पुत्र राव झांगलजी (झेलरसी) को जो उनकी दूसरी रानी से थे राज्य का उत्तराधिकारी बनाया
और अपने छोटे पुत्र उमरसी को बड़ी रानी के पुत्र होने के कारण मांडू, शाजापुर, डुसाड़िया, भरजुनोमा आदि परगने देकर अलग व्यवस्था करदी। किन्तु उमरसी इससे प्रसन्न नहीं रहे और
अपने छोटे भाई सुमरसी के साथ आबू पर्वत की ओर होते हुए सिन्ध के मरूस्थल की ओर चले गये।
उमरसी-समरसी दोनों भाईयों ने सिन्ध के खलीफा की कमजोर स्थिति का लाभ उठा बहुत बड़े इलाके पर अपना अधिकार कर लिया। उमरसी ने अमरकोट का किला बनाया। उसे अपनी राजधानी बनाया; उमरसी ने समरसी को वहीं छोड़ आबू की ओर आकर दट के किले पर अधिकार कर लिया। इन्हीं उमरसी के वंशज उमट (परमार) राजपूतों के नाम से प्रसिद्ध हुए।
हिन्द राजस्थान में दी गई वंशावालियों के अनुसार भोज के कई पीढ़ीयों बाद रणधवल हुआ जिनके पुत्र दतार हुए तथा उनके बेटे उम के नाम पर उमट परमार वंश चला।
कुछ विद्वानों का मत यह है कि गुजरात के खेरालू (पालनपुर के दक्षिण) जिले के उमरा गाँव में रहने के कारण वहाँ के परमार उमट कहलाए।
उमट राजपूतों की उत्पत्ति के विषय में विद्वानों का चाहे जो मत हो फिर भी यह बात तो निश्चत है कि उमट राजपूत उमरसी के वंशज हैं जो प्रसिद्ध परमार वंश में उत्पन्न हुए थे।
राणा उमरसी से रावत सारंगसेन तक उमट परमार आबू और मेवाड़ से मालवे उज्जैन और धार की ओर आए। रावत सारंगसेन से रावत मोहनसिंह तक जबकि वृहत उमटवाड़ी राज्य था राजगढ़ और नरसिंहगढ़ के दो किलो के क्षेत्र में अलग-अलग राज्य स्थापित हुए।
देवीसिंह मंडावा द्वारा लिखित "क्षत्रिय राजवंशों का इतिहास" पुस्तक से साभार