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History of Nikumbh Kshatriya निकुम्भ राजवंश का इतिहास

History of Nikumbh Kshatriya निकुम्भ राजवंश का इतिहास 

भारत के 36 क्षत्रिय राजवंशों में एक है निकुम्भ वंश | निकुम्भ सूर्यवंशी क्षत्रिय है। इतिहासकार देवीसिंहजी मंडावा ने अपनी पुस्तक “राजपूत शाखाओं का इतिहास” में इस वंश का वर्णन किया है | ठाकुर बाहदुरसिंह बीदासर लिखित क्षत्रिय वंशावली में लिखा है कि निकुम्भ क्षत्रिय सूर्यवंशी राजा इक्ष्वाकु के 13 वे वशंधर ‘निकुम्भ' के हैं। इनका मांडलगढ़ में राज्य था। इसी प्रकार राजपूत वंशावली के अनुसार भी इक्ष्वाकु वंश के प्रसिद्ध राजा निकुम्भ के वंशज ही निकुम्भवंशीय क्षत्रिय कहलाते है।



अयोध्या से चलकर बम्बई के आसपास के क्षेत्र, जो खानदेश कहलाता है, इस पर इन्होंने अपना राज्य स्थापित किया था। वहाँ से इन्हें हैहयवंशी राजा तालजंघ ने हरा दिया, जिससे ये सिन्धु नदी पर आ बसे। बाद में एक ऋषि की कृपा से इन्होंने अपना खोया राज्य वापस प्राप्त कर लिया। इस संघर्ष पर इतिहासकार ओझा जी ने अपनी पुस्तक में लिखा है। 

आभानेरी का वर्णन : कनिंघम का मत है कि सूर्यवंशी राजा कुवलयाश्व ने राजस्थान से धुन्ध का मार कर धुन्धमार की उपाधि प्राप्त की थी तथा वहाँ अपना राज्य स्थापित किया था। बाद में यह क्षेत्र उन्हीं के नाम से ढूंढाड़ कहा जाने लगा। यह क्षेत्र जयपुर के आसपास था तथा इसकी राजधानी आभानेरी थी। आभानेरी बांदीकुई रेलवे स्टेशन से चार मील पूर्व की ओर जयपुर राज्य में स्थित थी। वहाँ अब भी दो सुन्दर स्मारकों के भग्नावशेष देखने को मिलते हैं, जिनको विद्वान 9वीं और 10वीं सदी का मानते हैं। बाद में इस वंश के शासक अलवर की ओर बढ़ गए और वहाँ अलवर में दुर्ग बनाकर उसे अपनी राजधानी बनाया। अलवर का किला निकुम्भों का बनाया हुआ है। दिल्ली के सुल्तान सिकन्दर लोदी ने तिजारा में अपना प्रतिनिधि नियुक्त किया और अलावलखाँ खानजादा ने निकुम्भ क्षत्रियों से अलवर का दुर्ग छीन लिया।

ई. 1153 और ई. 1207 के बम्बई क्षेत्र के पारन गाँव से मिले दो शिलालेखों में लिखा है - सूर्यवंश में राजा निकुम्भ हुआ, जिसके वंश में मान्धाता, सगर, भगीरथ आदि राजाओं ने जन्म लिया। उसी वंश में कृष्णराज, गोवन, गोविन्दराज, गोवन द्वितीय, कृष्णराज द्वितीय, इन्द्रराज (जिसकी रानी श्रीदेवी राजा सगर के वंश की थी और इसका प्रधान चंगदेव था।), गोवन तृतीय और सोईदेव हुए।

सोईदेव देवगिरी के यदुवंशी क्षत्रियों का सामंत और 1600 गाँवों का स्वामी था। सोईदेव का उत्तराधिकारी उसका छोटा भाई हेमाद्रिदेव हुआ। गोरखपुर, अजामगढ़, जौनपुर, बलिया, गाजीपुर, मुजफ्फरनगर जिलों में इस वंश के क्षत्रिय निवास करते हैं। श्रीनेत व कटहरिया निकुम्भवंश की शाखा है।

श्रीनेत या सिरनेत- ‘शिरनेत’ की उपाधि के कारण निकुम्भ वंश की इस शाखा को सिरनेत कहने लगे। सातवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में अलवर (राजस्थान) से चलकर निकुम्भ राजा लवंगदेव के तीन पुत्रों महिमाशाह, महिमालोचन शाह और चन्द्रभान शाह ने गढ़वाल क्षेत्र में श्रीनगर राज्य की स्थापना की। बाद में यही निकुम्भ वंशीय क्षत्रिय पूर्वी उत्तरप्रदेश में सिरनेत कहलाने लगे। राजा महिमाशाह, महिमालोचन शाह, चन्द्रभान शाह कन्नौज के शासक अर्जुन के समकालीन थे।

1194 ई. में कन्नौज नरेश जयचन्द्र गहरवार की मृत्यु के बाद, श्रीनेतों ने दहेज में मिले रूद्रपुर राज्य को शक्ति सम्पन्न कर, पूर्व में बिसेनों के मझौली राज्य (गोरखपुर) से लेकर पश्चिम में बस्ती जिले तक 150 कोस में फैला लिया। 1723 ई. में अवध के सूबेदार सआदत खॉ को उनवल और सतास्सी राज्य (रूद्रपुर) की सेना ने परास्त किया। 1857 ई. के स्वतन्त्रता संग्राम में सतास्सी नरेश उदित नारायण सिंह के नेतृत्व में श्रीनेतांे के राज्यों के साथ अन्य क्षत्रियों ने भी मिलकर गोरखपुर क्षेत्र से अंग्रेजी सत्ता को समाप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

आजकल सिरनेत वंशीय क्षत्रिय इन रियासतों के अलावा बलिया, गाजीपुर, बस्ती तथा बिहार के मुजफ्फरपुर, भागलपुर, छपरा, दरभंगा आदि जिलो में निवास करते है।  

नरवनी या नरौनी- कुछ सिरनेत वंशीय क्षत्रिय नरवरगढ़ में रहने के कारण नरौनी या नरवनी कहलाने लगे। आजकल ये बिहार के छपरा, मुजफ्फरपुर आदि जिलो में निवास करते है।

कटहरिया : कटरिया निकुम्भवंश की एक शाखा है। इनका गोत्र-वसिष्ठ तथा प्रवर वसिष्ठ, आत्रि और सांकृति है। वेद-यजुर्वेद, शाखा-वाजसनेयी, सूत्र-पारस्कर गृह्यसूत्र है। कटेहर (वर्तमान रुहेलखंड) में रहने के कारण ही ये कटहारिया क्षत्रिय कहलाए। बरेली सैटलमेंट सम्भल के पश्चिम में बसा लखानौर गाँव और उसके आस-पास का क्षेत्र कटहर कहलाता था। वर्तमान में इस वंश के क्षत्रिय शाहजहांपुर, मुरादाबाद, बरेली, बदायूं, एटा, अलीगढ़, बुलन्दशहर, गाजीपुर, बस्ती, गोरखपुर आदि जिलों में बसते हैं।

निकुम्भ राजवंश का गोत्र - वशिष्ट, प्रवर तीन है - वशिष्ट, अत्रि और सांकृति। वेद-जयुर्वेद। शाखा- वाजसनेयि । सूत्र- पारस्कर गृहयसूत्र। कुलदेवी- कालिका। चिन्ह- लाल सूर्य। शस्त्र- तलवार। नदी- सरयू, | कुछ निकुम्भ क्षत्रियों का गौत्र भारद्वाज भी मिलता है |

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