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दिल्ली नरेश तेजपाल तोमर प्रथम (1081-1105 ई.) Tejpal Tomar 1st. History


दिल्ली नरेश तेजपाल तोमर प्रथम : अनंगपाल द्वितीय के पश्चात् 1081 ई. में दिल्ली के राजसिंहासन पर तेजपाल प्रथम आसीन हुए। तेजपाल प्रथम का इतिहास उसके समकालीन गजनी के सुल्तानों और चौहानों के इतिहास के आधार पर ही है। ये स्वतंत्र राजा हुए और इन दोनों की गतिविधियों के शिकार भी हए। तेजपाल तोमर के समकालीन चौहान राजा विगृहराज तृतीय (1070-1090 ई.) पृथ्वीराज प्रथम (1090-1110 ई.) थे।

तोमरों पर यह आरोप लगाया जाता है कि उन्होंने तुर्कों से सन्धि कर ली थी और अपने पड़ौसी हिन्दू नरेशों से लड़ाई झगड़े प्राय: किया करते थे परन्तु चौहानों और अन्य किसी भी भारतीय नरेशों के साथ तोमरों के किसी ऐसे युद्ध का उल्लेख प्राप्त नहीं होता जिससे यह सिद्ध किया जा सके। न ही ऐसा कोई प्रमाण है कि कभी किसी तुर्क ने भारत में दिल्ली के तोमरों की सीमा में प्रवेश किया क्योंकि तोमरों का राज्य सुदृढ़ था, सीधा दिल्ली या उसके आस-पास के क्षेत्र पर हमला तो महमूद भी नहीं कर सका था। कितनी साफ सुथरी बात लिखी है-'हिन्दी विश्व-कोश' में कि "अनंगपाल द्वितीय ने लौह स्तम्भ की स्थापना के पश्चात् अपनी नीति बदल कर अपने राजपूत पड़ौसियों से युद्ध चालू रखा" और अपने दुश्मन मुसलमानों से सन्धि कर ली, कितने बलशाली थे चौहान जिन्होंने इस नई नीति से कुद्र होकर दिल्ली पर और प्रबल आक्रमण किये।

चौहान-चौलुक्यों और तुर्कों से हुए संघर्षों में एक भी तोमर का मारा जाना नहीं लिखा गया है। न ही तोमरों का कोई उल्लेख है। हम्मीर महाकाव्य इत्यादि ग्रन्थ आख्यानों में भी इसका उल्लेख प्राप्त नहीं होता है। विग्रहराज तृतीय और शहाबुद्दीप के युद्ध में किसी भी तोमर का मारा जाना नहीं लिखा है। चौहान पृथ्वीराज प्रथम ने चौलुक्यों को पुष्कर के युद्ध में पराजित किया जिसमें 700 चौलुक्य सैनिक मारे गये जिसमें एक भी तोमर था ऐसा उल्लेख नहीं मिलता। पृथ्वीराज ने 'बागुलीशाह सुरताण' को पराजित किया जो शाकम्भरी के पास से आगे बढ़ रहा होगा। पृथ्वीराज ने अपने राज्य की रक्षा की और उसकी भुजाओं को मोड़ा था जिसका नतीजा गहड़वाल मदनचन्द को भुगतना पड़ा। इस झगड़े में तोमरों का कोई हाथ नहीं था। द्विवेदी के अनुसार उसका एक मात्र दोष यह था कि उनका सुरक्षा प्रबन्ध दुर्बल नहीं था और वे शक्तिशाली थे अन्यथा सुरतान मदनचन्द गहड़वाल के समान तोमर महिपाल को भी बन्दी बना लेता।

डॉ. महेंद्रसिंह तंवर खेतासर की पुस्तक "तोमर राजवंश का राजनैतिक और सांस्कृतिक इतिहास" से साभार 

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