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हांडी भडंग नाथ सम्प्रदाय के एक महान संत

महात्मा हांडीभडंग नाथ

Handi Bhadng Nath : हांडी भडंग नाथ सम्प्रदाय के एक महान संत थे | हांडी भडंग के बारे में गजानंद कविया अपनी पुस्तक "सिद्ध अलुनाथ कविया में लिखते हैं - महात्मा हांडी भडंग वास्तव में कौन थे? कहाँ के थे? और कब हुए? यह अभी तक रहस्य ही बना हुआ है। इस सम्बन्ध में प्रामाणिक रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता है क्योंकि ऐतिहासिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं हैं। नाथ सम्प्रदाय सम्बन्धी पुस्तकों में उनके नाम का किंचित जिक्र अवश्य आया है जिसकी चर्चा आगे की जाएगी । पहले शताब्दियों से प्रचलित जन-श्रतियों को लेते हैं जो ग्राम्याञ्चलों में आज भी वैसी ही ताजा बनी हुई हैं। इस जन-श्रुति के अनुसार महात्मा हांडी भडंग पूर्वाश्रम में बलख बुखारा के बादशाह थे। कहा जाता है कि एक रात कोई दासी हरम में सुल्तान के सोने की शैया तैयार कर रही थी। जब शाही शैया का सब सरंजाम पूरा हो गया तो दासी के मन में क्षण भर के लिये उस भव्य शैया की सुखानुभूति लेने का भाव आ गया और वह उस पर लुढक गयी। लेटते ही उसकी आँख लग गयी और गहरी निद्रा में चली गयी।

कुछ समय बाद जब सुल्तान महल में सोने के लिये गया तो दासी को अपनी शैया पर सोते देख कर आग-बबूला हो गया और नींद के आगोश में बेखबर उस दासी पर कोड़े बरसाना शुरू कर दिया। दासी तिलमिलाकर फर्श पर आ गिरी लेकिन सुल्तान ने कोड़े मारना जारी रखा। कोड़ों की मार खाकर भी वह दासी हँसने लगी और हँसती ही रही। उसकी इस प्रतिक्रिया को देखकर सुल्तान ने कोड़े मारना बंद कर दिया और उसने हँसने का कारण पूछा। इस पर उस दासी ने उत्तर दिया- "जहाँपनाह, मैं तो कुछ ही लमहों के लिये इस सेज पर सो गयी थी तो मुझे सात कोड़े खाने पड़े, हुजूर तो रोजमर्रा इसी सेज पर सोते हैं, फिर हुजूर को अल्लाताला के कितने कोड़े खाने पड़ेंगे? मैं यही हिसाब लगाकर हँस रही थी।" दासी के ये वाक्य सुनकर सुल्तान के ज्ञानचक्षु खुल गये और वैराग्य हो गया। दासी को रहनुमा मानकर वह घोड़े पर सवार होकर पूर्व दिशा की ओर चल पड़ा और पंजाब के इलाके में पहुँचा। जहाँ उसे गोरख टीले पर गुरु गोरख नाथ के दर्शन हुए और वह उनके शरणापन्न हो गया। गुरु गोरख नाथ ने उसे दीक्षित कर अमर मंत्र दिया और मान्यता है कि उन्हें भर्तृहरि एवं गोपीचंद की तरह सदेह अमरत्व प्रदान किया। ये तीनों ही चिरंजीवी माने जाते हैं। महात्मा हांडी भडंग के सम्बन्ध में यह सोरठा प्रसिद्ध है

जिण सिर एतो भार, सो किम झोकत भार को। भार सिंगार उतार, भार झोंक दियो भार में।

मान्यता है कि गुरु गोरखनाथ ने सल्तान को एक हांडी दी और कहा कि इसका पूरा ध्यान रखना। इस हांडी को वह अपने गले में लटकाये रखता था। दीक्षा के बाद गोरखनाथ ने उसे इस्लाम धर्म में ही बने रहने का आदेश दिया।

इस्लाम का रंग हरा है अतः यह अमर योगी हरा वस्त्र पहनता है और गले में हांडी धारण करता है। नाथ सम्प्रदाय में कर्ण-छेदन कराकर मुद्रा पहनने की प्रथा है। जो मुद्रा धारण नहीं करते उन्हें औघड़ कहा जाता है। गोरख-शिष्यों में केवल हांडी भडंग ही एकमात्र औघड़ हैं। मान्यता है कि गुरु गोरखनाथ ने ही सुल्तान का नामकरण किया। सुल्तान भीमकाय थे। 'भड़' शब्द भीमकाय का पर्याय है। रूढ़ अर्थ में कालांतर में यह वीर पुरुष के लिये प्रयुक्त होने लगा। असली नाम 'भडंग' अथवा विशालकाय। हांडी साथ रखने के कारण 'हांडी भडंग'

संत हांडी भडंग के बारे में हम आगे भी लेख और जानकारी देंगे | 

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