लेखक : डॉ. महेंद्रसिंह तंवर, खेतासर
1051 ई. में दिल्ली के राजसिंहासन पर अनंगपाल द्वितीय बैठा। मेहरौली के लौह स्तम्भ पर एक लेख प्राप्त हुआ उसके अनुसार वि.सं. 1109 अर्थात् 1052 ई. में अनंगपाल दिल्ली पर राज्य कर रहा था। (द्विवेदी, हरिहर निवास, दिल्ली के तोमर, पृ. 236)
अनंगपाल अपनी राजधानी अनंगपुर से हटाकर योगिनीपुर और महिपालपुर के
बीच स्थित ढिल्लिकापुरी में स्थापित की। तोमरों के समय में उनकी राजधानी
बदलती रहती थी। द्विवेदी के अनुसार अनंगपाल द्वितीय के पूर्व ही इस ढिल्लिका में
कुछ मन्दिर और भवन बने हुए थे। अपने राज्य के दूसरे वर्ष में ही अनंगपाल ने
लोहस्तम्भ की स्थापना की थी। लौहस्तम्भ को ही आधार बनाकर अनेक निर्माण कार्य
करवाये और लालकोट नामक किला बनवाया गया।
कुव्वतुल-इस्माल के शिलालेख के अनुसार और एक अनुश्रुति से ज्ञात होता है कि अनंगपाल द्वितीय ने 27 महल और मन्दिर बनवाये थे। इनमें से कुछ महल व मंदिर पहले बने हुए थे। अनंगपाल ने लौह स्तम्भ के समीप ही अनंगताल नामक सरोवर भी बनवाया, इसकी लम्बाई उत्तर-दक्षिण में 169 फुट और पूर्व-पश्चिम में 152 फुट है। इस तालाब से थोड़ी दूर तक विशाल भवन था जो लौह स्तम्भ के घेरे हुए था। इन सब निर्माणों में चारों और लालकोट गढ़ बनवाया गया था। अनंगपाल ने ये निर्माण कार्य किस काल में करवाया इसके कुछ संकेत लौह स्तम्भ 1052 ई. में दिल्ली लाया गया था ऐसा उसमें उत्कीर्ण लेख से प्रकट होता है। कनिंघम ने उस लेख को पढ़ा था जिसका सही अर्थ सन्नति दिहाली 1109 अनंगपाल बहि संवत् 1109 अर्थात् 1052 ई. में लौह स्तम्भ को दिल्ली लाया गया। उस समय दिल्ली में विक्रम संवत् प्रचलित हो गया था उसके पूर्व वल्लभी संवत् प्रयुक्त होता था। यह लेख अनंगपाल ने स्वयं नहीं उत्कीर्ण कराया था जबकि लौह स्तम्भ को दिल्ली ढोकर लाने वाले कारीगर ने खुदवा दिया था।