Vais Rajput History : थानेश्वर का पुण्यभूति वैस राजवंश
वैसों का जो राज्य वैशाली में था, जिस पर महापद्मनन्द ने आक्रमण करके उस नष्ट किया था, उस समय वैस वहाँ से निकलकर दूसरे स्थानों में चल गए। इन वैसों की एक शाखा पंजाब में चली गई। इन्होंने पंजाब में एक नगर श्रीकंठ पर अधिकार किया, जिसका आगे चलकर थानेश्वर नाम हुआ। वैस वंश में पहला नाम राजा पुष्यभूति का मिलता है, इसी से विद्वान इस वंश को पुष्यभूति लिखने लगे हैं। इसके बाद इस वंश में नरवर्धन, राज्यवर्धन और आदित्यवर्धन के नाम मिलते हैं। आदित्यवर्धन का पुत्र प्रभाकरवर्धन था। इस वंश में प्रभाकरवर्धन पहला राजा था, जिसने अपनी वीरता से हूणों पर प्राप्त विजय के फलस्वरूप ख्याति अर्जित कर ली थी।
प्रभाकरवर्धन ने अपनी शक्ति बढ़ाकर परमभट्टारक और महाराजा की पदवी धारण की थी। इसके प्रताप से उसके पड़ौसी राजा सदैव सशंक रहते थे। महाकवि बाणभट्ट ने हर्षवर्धन' में उसके प्रताप और प्रभाव का वर्णन करते हुए लिखा है कि हूणा हरिणा केशरी, सिन्धुराज ज्वरों, गुर्जर प्रजागर इत्यादि अर्थात् प्रभाकरवर्धन हूणरूपी हरिणों के लिए सिंह था। सिन्धु देश के राजा के लिए ज्वर था और गुर्जर देश को उसके भय से नींद नहीं आती थी। प्रभाकरवर्धन के राज्य की उत्तरी सीमा पर हूणों के आक्रमण होते रहते थे। उसने उन्हें कई युद्धों में पराजित करके भागने को बाध्य कर दिया था। प्रभाकरवर्धन के राज्यवर्धन और हर्षवर्धन नाम दो पुत्र और राज्यश्री नाम की एक पुत्री थी। राज्यश्री का विवाह कन्नौज के मोखरीवंशीय महाराजा गृहवर्मा के साथ हआ था।
प्रभाकरवर्धन के अन्तिम काल में उसके राज्य की उत्तरी सीमा पर हूणों ने पुन: आक्रमण किया। इस पर उसने अपने ज्येष्ठ पुत्र राज्यवर्धन को ससैन्य हूणों पर भेजा। राज्यवर्धन हूणों पर विजय प्राप्त कर लौटा, परन्तु थानेश्वर में अपने पिता के दिवंगत होने के समाचार सुनकर वह बहुत दुःखी हुआ। उसी समय उसे द्वितीय हृदय विदारक समाचार यह मिला कि मालवा के राजा ने उसके बहनोई कन्नौज के राजा गृहवर्मा को मारकर कन्नौज पर अधिकार कर लिया और उसकी बहन राज्यश्री कारागार में डाल दी गई है।