Vais Rajvansh History | वैस राजपूतों का इतिहास
वैस राजपूत वंश के बारे में "राजपूत शाखाओं के इतिहास" नामक पुस्तक में कुंवर देवीसिंह मंडावा ने विस्तार से लिखा है | उन्होंने लिखा है कि - ये सूर्यवंशी क्षत्रिय हैं। कवि बाण ने भी हर्ष चरित्र' में वैस वंशीय क्षत्रियों को सूर्यवंशी ही लिखा है। इनका गोत्र भारद्वाज, प्रवर तीन हैं- भारद्वाज, बार्हस्पत्य और आंगिरस तथा वेद यजुर्वेद है और शाखा वाजसनेयी, सूत्र पारस्कर गृह्यसूत्र, कुलदेवी फलिका, इष्ट शिवजी, ध्वजा आसमानी और चिह्न नाग है। इनका चिह्न नाग होने से कदाचित कुछ लेखकों ने इन्हें नागवंशी मान लिया है। वैस नाग को मारते नहीं हैं। बीदासर के ठाकर बहादुरसिंह ने 'क्षत्रिय वंशावली' में इन्हें सूर्यवंशी ही लिखा है और जाति भास्कर' में भी इन्हें सूर्यवंशी ही बताया गया है। सबसे प्राचीन प्रमाण हर्ष चरित्र' में बाण ने हर्ष की बहन राज्यश्री के विवाह के वर्णन में इन्हें सूर्य और चन्द्रवंश का समागम लिखा है, वह भी इन्हें सूर्यवंशी सिद्ध करता है, क्योंकि मोखरी वंशी चन्द्रवंशी थे।
सवाल उठता है कि वैस क्षत्रिय नाग को क्यों मानते हैं? तथा इनके झण्डे में नाग का चिह्न क्यों है? यह सम्भव है कि मध्यकाल में जब भारशिव नागों का गुप्तों से पूर्व सापाज्य था और वे शक्तिशाली बन गए थे, तो हो सकता है कि उस समय किसी वैस राजा ने जो कि नागों का दोहिता हो, उनकी सहायता से उन्नति की हो। गुप्त लिछवियों के दोहिते थे, जिसका उन्होंने गर्व के साथ वर्णन किया है। वाकाटकों का भी उदय इसी तरह हुआ था। यही कारण हो सकता है कि वैसों ने भी नागों की मदद से उन्नति की हो और उसी अहसान से उन्होंने अपना चिह्न नाग रख दिया हो। ऐसा भी माना जाता है कि शालीका गणराज्य भी वैसों के नाम पर ही हुआ अथवा वैशाली में निवास करने से यह गस कहलाया। दोनों ही सम्भवनाएँ हो सकती हैं। जैसे राजस्थान में राठौड़ों की एक पाषा मेड़ता नगर पर राज्य करने से मेड़तिया कहलाती है। इसी प्रकार कछवाहों में भी राव शेखा व उनके वंशजों के प्रभुत्व में रहने से वह भू-भाग शेखावाटी कहलाता है। अगर इस वंश (वैस) का वैशाली से सम्बन्ध है तो फिर यह सिद्ध हो जाता है कि ये सूर्यवंशी ही थे |