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Raja Bhoj Parmar क्षत्रिय सम्राट राजा भोज परमार का इतीहास

 Raja Bhoj Parmar : Kshatriya Samrat Raja Bhoj Parmar Rajput | 

राजा भोज परमार | क्षत्रिय सम्राट राजा भोज परमार राजपूत  

विक्रमादित्य के बाद यदि किसी राजा को भारतीय प्राचीन इतिहास में प्रसिद्धि मिली तो वह परमार राजा भोज ही था। यह विद्यानुरागी एवं विद्वान राजा था। परमार नरेश मुंज ने अपने भतीजे भोज को गोद ले लिया था किन्तु छोटी अवस्था के कारण उसके पिता सिन्धुराज ही मालवे का शासन सम्भाल रहे थे। सिन्धुराज की मृत्यु के बाद राजा भोज मालवे की गद्दी पर बैठा। राजा भोज परमार वंश के एक यशस्वी एवं प्रतापी नरेश थे। भारतीय दन्तकथाओं में विक्रमादित्य के बाद इनकी दन्तकथायें सर्वाधिक मिलती हैं।

भोज ने शासन सम्भालते ही राज्य की स्थिति को सुदृढ़ बनाया। इसने अपने दादा हर्ष सीयक के प्रदेश जो मोडासे के आसपास थे अपने अधिकार में बनाये रखा। प्राप्त अभिलेखों के अनुसार उसे परम भट्टारक, महाराजाधिराज, परमेश्वर आदि उपाधियों से सस्बोधित किया जाता था जो उच्चाभिलाषा का सूचक है।



राजा भोज ने परमार राज्य के शत्रु व मुंजराज के हत्यारे कल्याण के चालुक्यों पर आक्रमम किया तथा दूरदर्शी शासक का परिचय देते हुए शत्रु के विरोधी राजाओं को अपने साथ मिला लिया। इस युद्ध में मुंज की स्त्री कुसुमवती भी पुरुष वेष में राजा भोज के साथ थी जिसने शेष जीवन बौद्ध भिक्षुणी के रूप में व्यतीत किया। प्रारम्भिक धीमी विजय के बाद परमार सेना ने कोंकण पर धावा बोल दिया जिसमें जयसिंह को पराजित कर कोंकण पर अधिकार कर लिया। बांसवाड़ा में प्राप्त 1076 विक्रम सवत् के दान पत्र से ज्ञात होता है कि इस विजय की खुशी में दान वितरण किया गया। एक कवि ने लिखा है-

विद्यानुरागी भोज भी कैसा सदाशय भूप था।

विख्यात कवियों के लिए जो कल्पवृक्ष स्वरूप था। 

उदयपुर प्रशस्ति में भोज को दिग्विजयी सार्वभौम राजा माना है जिसमें चंदीश्वर, इन्द्ररथ, तोग्गल, भीव, कर्णोट, लाटेश, गुर्जदेश और तुरूष्क पर विजय का विशेष उल्लेख मिलता है। गुजरात इतिहास के ज्ञाता मुंशी के अनुसार गुजरात पर राजा भोज का अधिकार था।

जब महमूद गजनवी सोमनाथ जाता हुआ राजस्थान पहुँचा तो ददरेवा के गोगा चौहान ने वीरता से उसका मुकाबला किया। गोगा व उसके परिजन वीरता से लड़ते हुए धर्म रक्षार्थ वीरगति को प्राप्त हुए। राजा भोज को जब महमूद के अभियान का पता चला तो वह सेना लेकर सौराष्ट्र के नाके पर ठहर गया। महमूद को उसका पता लगने पर रन आफ कच्छ के मार्ग से मुलतान होते गजनी जाने को बढ़ चला ताकि राजा भोज के मुकाबले से बच सके। इसमें महमूद गजनवी सफल भी हुआ। राजा भोज ने महमूद के पौत्र मजदूद व मसूद को पराजित किया जिनका भारतीय इतिहास में बड़ा महत्व है।

ई. 1055 में राजा भोज बीमार हो गया इसका लाभ उठाकर राजा कर्णदेव व राजा भीमदेव ने मालवा पर चढ़ाई करदी। इसी बीच राजा भोज की मृत्यु हो गई। इससे मालवा में अव्यवस्था फैल गई। राजा कर्ण ने न केवल धारा नगरी पर अधिकार किया बल्कि उसे जी भरकर लूटा । राजा भोज एक धीर वीर, विद्वान, विद्वानों का आदर करने वाला, दानशील राजा था। इसकी शूरवीरता से पड़ोसी राजा सदा कांपते रहते थे। महमूद भी डरकर सिंध के रास्ते मुलतान की तरफ चला गया। भोज एक बलशाली शासक था जो हर दृष्टि से सक्षम शासक था। परमार वंश के इस बहादुर राजा को परमदेव नाम से भी उल्लिखित किया है। राजा भोज न केवल परम शिव भक्त ही था वह अन्य धर्मों व धर्मावलम्बियों का आदर करता था। राजा भोज ने 50 साल तक राज्य किया था।

राजा भोज के बाद जयसिंह जो विंध्याचल के जंगलों में भाग गाय था पुनः मालवा का शासक बन गया। यह वि.स. 1107 के करीब गद्दी पर बैठा। इसके बाद उदयादित्य राजा बना । डोगर गांव के लेख में उदियादित्य को भोज का भाई लिखा है । जिसने मालवा के परमार राज्य को वापस स्थायित्व प्रदान किया। इसके बाद लक्ष्मदेव व नरवर्मा क्रमशः गद्दी पर बैठे जो उदयादित्य के पुत्र थे। जगदेव जो त्रिविध वीर था वह मालवा छोड़कर चला गया था। नरवो एक विद्वान राजा था तथा दानी भी था। उसके समय के दो शिलालेख विक्रम संवत् 1161 व विक्रम संवत् 1164 के मिले है। इसके बाद यशोवर्मा, जयवर्मा, अजयवर्मा व विंध्यवर्मा क्रमशः गद्दी पर बैठे। इसके बाद शुमट वर्मा मालवे का शासक बना जिसके शासन काल में परमार बड़े शक्तिशाली हो गये। इसके बाद क्रमशः अर्जुन वर्मा, देवपाल,जयतुगीदेव, जयवर्मा,जयसिंह तृतीय, अर्जुन वर्मा द्वितीय तथा जयसिंह चतुर्थ मालवा के शासक बने । ईस्वी सन् 1291 में जलालुद्दीन खिलजी व उसके बाद मुहम्मद तुगलक के आक्रमण ने परमार राज्य को पूर्णरूपेण समाप्त कर दिया। परमार वंश ने करीब 500 वर्षों तक मालवा पर शासन किया। मुसलमानों ने इस वंश के 24 वीं पीढ़ी से राज्य अपने अधीन कर लिया। परमार वंश के सिक्कों पर गरूड़ और सर्प का चिन्ह अंकित मिला है।

कुंवर देवीसिंह मंडावा लिखित पुस्तक  "क्षत्रिय राजवंशों  इतिहास" से साभार 


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