परमारों का अजमेर प्रवेश
मालवा पर मुसलमानों के अधिकार के बाद परमारों की एक शाखा अजमेर सीमा में प्रवेश कर गई। पिसांगन से प्राप्त 1475 ईस्वी के लेख से इसका पता लगता है। राघव की राणी के इस लेख में क्रमशः हमीर हरपाल,महिपाल,व राघव का नाम आता है। महिपाल मेवाड़ के महाराणा कुम्भा की सेवा में था। रघुनाथ के पुत्र कर्मचन्द ने संकट के समय महाराणा सांगा को अपने यहाँ रखा (कुँवर पदे में)। क्रमशः कर्मचन्द का पुत्र जगमाल का मेहाजल का पंचायण था। पंचायण राजा मानसिंह आमेर का नाना था। गुजरात के सुल्तान बहादुरशाह ने जब 1532 ई. में चितौड़ का घेरा डाला तो दूसरा साका व जौहर हुआ जिसमें पंचायण वीर गति को प्राप्त हुआ। मेवाड़ के महाराणा उदयसिंह ने पंचायण के पुत्र मालदेव को जागीर में जहाजपुर प्रांत दिया मालदेव के पुत्र शार्दूल को बादशाह जहांगीर ने अजमेर के समीप का इलाका जागीर में दिया जिसने मसूदा को अपनी राजधानी बनाया।
हमीर के पितामह सांगण जिनको रावत की उपाधी प्राप्त थी ने पिसांगण की स्थापना की तथा रावत पंचायण ने जयपुर राज्य में मालपुरा के पास पचेवर बसाया था। श्रीनगर कस्बा जो अजमेर के निकट है शार्दूल ने बसाया था। कालांतर में मेड़तिया राठौरों ने परमारों से यह इलाका अपने अधिकार में कर लिया।
कुंवर देवीसिंह मंडावा लिखित पुस्तक "क्षत्रिय राजवंशों इतिहास" से साभार