त्रिविध वीर जयदेव परमार- यह सर्वगुण सम्पन्न शासक था, जिसकी ख्याति मालवा के अलावा अनेकों राज्यों में फैल गई थी। जगदेव उदियादित्य की दूसरी रानी सोलंकी के पुत्र थे
जिनसे पिता बहुत प्यार करते थे। हालांकि आपको पिता के बाद गद्दी पर बैठने से कोई नहीं रोक सकता था लेकिन अनपे बड़े भाईयों के होते गद्दी हासिल करना धर्म विरुद्ध मानते थे। जगदेव का विवाह राजस्थान में टोडा के चावड़ों की पुत्री वीरमती से हुआ था।
ई.1094 में लक्ष्मणदेव के बाद भाई नरवर्मा मालवा की गद्दी पर बैठा तब जगदेव ने मालवा छोड़ दिया। मालवा से सिद्धराज की सेवा में चले गये परन्तु सिद्धराज द्वारा मालवा पर चढ़ाई के कारण आप चालुक्य परमर्दी विक्रमादित्य की सेवा में चले गये। राजा ने जगदेव को पुत्रवत समझा व सम्मान दिया। यहां आपने अनेकों युद्धों में विजय प्राप्त की जिससे आपका यश दूर-दूर तक फैला गया। आप महान दानी भी थे। आपने अपने ऋणग्रस्त उपाध्याय को एक काव्य रचना पर आधा लाख स्वर्ण मुद्राये प्रदान की थी।
जब मालवा पर विपत्ति के बादल मंडराने लगे तो पुनः मालवा की मदद को आ गये। जगदेव परमार ने सिद्धराज जयसिंह की सेना को आबू की घाटियों में परास्त किया। जगदेव अन्त तक विक्रमादित्य का स्वामिभक्त बना रहा।
आपकी मृत्यु ई.1137 के करीब हुई । जगदेव आज के क्षत्रियों के लिए आदर्श हैं।