History of Chol Kahstriya Rajvansh चौल राजवंश का इतिहास - 2
उरियार (त्रिचनापल्ली के पास) के चौलों का इतिहास चौथी सदी से नौवीं सदी तक अप्रसिद्ध रहा। कलभरन वंश का उस समय उस क्षेत्र पर अधिकार था। उरियार निवासी समकालीन लेखक बुद्धदत्त लिखता है कि कलभरन वंश का अच्युत विक्रांत काबेरी पट्टम का शासक था। चोरा, चौल व पांड्य उसके अधिकार में थे। बुद्धदत्त के अनुसार अच्युत का शासन पांचवीं शताब्दी तक बताया जाता है।
तेलगू राज्य के दक्षिण से कृष्णा में प्राप्त संस्कृत भाषा में लिखित प्राचीन पांड्य पत्रों के अनुसार पल्लव किसी दबाववश अपना नगर करिकल्ला चौलों के स्वामित्व में छोड़कर उत्तर की ओर चले गए थे, किन्तु पल्लव शिलालेख इस तथ्य की पुष्टि नहीं करते।
पांड्यों एवं पल्लवों द्वारा कलभरनी को पराजित कर स्वतन्त्र राज्य की स्थापना के समय भी कहीं चौलों के राज्य का उल्लेख नहीं मिलता। पल्लव, चालुक्य एंव पांड्य शिलालेखों में उनकी सेना आदि का विवरण अवश्य मिलता है।
तमिल साहित्य में भी चौल राजा-रानियों का उल्लेख प्राप्त होता है। संभवत: चौल, पांड्य व पल्लव अपने पैतृक घरों के आस-पास अधीनस्थ सामंत थे। उन्होंने अपने प्रभाव में धीरे-धीरे वृद्धि की। एक दूसरे राज्य के राजाओं के साथ विवाह संबंध स्थापित कर आपसी सम्बन्धों को दृढ़ एवं विस्तृत बनाया तथा शैव मत व वैष्णव मत को बौद्ध व जैन धर्म के विरुद्ध समर्थन प्रदान किया।
विजयल्ला जो चौल वंश का वास्तविक संस्थापक कहा जाता है, उसने उरियार के पास में सामंत के रूप में मुखिया की हैसियत से कार्य आरम्भ किया। एक शिलालेख, जो रुन्दुगलम (त्रिचनापल्ली जिला) से प्राप्त हुआ है, उसमें पाराकेशरी विजयल्ला' चौलदेव का उल्लेख मिलता है। यह शिलालेख विजयल्ला द्वारा भूमिदान के सम्बन्ध में है।
चौलों के पतन के समय काबेरी क्षेत्र में उनका उल्लेख प्राप्त नहीं होता। संभवत: चौल राजकुमार अन्य क्षेत्रों में चले गए थे, जहाँ छोटे-छोटे चौल राज्य थे, जैसा कि तेलगू एवं कन्नड़ राज्यों से विदित होता है। इनमें महत्तवपूर्ण रानाडू राज्य के चौल गुडप्पा, अन्नतपुर एवं कुरनूल जिलों में स्थित थे। प्राप्त पत्रों एवं अन्य जानकारियों के अनुसार उस वंश के चार राजाओं के नाम का उल्लेख मिलता है। ये राजा थे- नन्दी वर्मन, उसका पुत्र सिन्हा विष्णु, सुन्दरानन्द और धनजय वर्मन जो कि अन्तिम शासक महेन्द्र विक्रम वर्मन क पत्र था। उसके पत्र गनामादित्य और पुन्यकर्मा या प्रमुखरामा थे। ये अपने को करिकल्ला चौल के वंशज और चौल राजा मानते थे, किन्तु उनके नाम पल्लव व चालुक्य वंश के नामों से मिलते हैं तथा उनकी शील पल्लव राष्ट्रकूटों से मिलती है।
पुन्यकर्मा के वंशज एक शताब्दी तक शासन में रहे। गुडप्पा जिले में अपनी विशिष्ट स्थिति के कारण उन्होंने पल्लवों व चालुक्यों के संघर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। पुन्यकर्मा के बाद उसके वंशजों का गुडप्पा से अधिकार संभवत: समाप्त हो चुका था और वे दक्षिण भारत के विभिन्न क्षेत्रों में चले गए।
प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग के अनुसार धन्य कटका के दक्षिण पश्चिम के 200 मील के विस्तृत रानाडू राज्य पर चौल महाराजाओं का राज्य था। यह क्षेत्र जंगलों से
आच्छादित था जिसमें कहीं-कहीं थी। राज्य की जलवायु गर्म व नर्म थी। यहाँ के लोग तीर्थंकरों को मानते थे। देव मन्दिर कम तथा दिगम्बर मन्दिरों की बहलता थी।