History of Chol Kahstriya Rajvansh चौल राजवंश का इतिहास
चौल वंश दक्षिण भारत का प्राचीन राजवंश है। इसका वर्णन वाल्मीकि रामायण, पाणिनि की अष्टाध्यायी तथा कौटिल्य के अर्थशास्त्र में मिलता है। इन ग्रंथों में चौल वंश को पांडव वंश की शाखा माना गया है। ये चन्द्रवंशी राजा थे। चन्द्रवंशीय तीन भाइयों पांड्य, चौड़ (चौल) तथा चेरी के अपने-अपने नाम से ये तीन वंश चले। एक दूसरी धारणा के अनुसार भरतवंशी दुष्यंत की दूसरी पत्नी महती के करुरोम और द्वादश्व नामक दो पुत्र थे। दूसरे पुत्र द्वादश्व के चार पुत्र कजींजर, केरल, पांड्य और चौल हुए। इनके नाम से ही इनके चार वंश चले। किसी समय ये दक्षिण भारत आ बसे और यहीं राज्य करने लगे। इस धारणा के अनुसार भी चौल चन्द्रवंशीय क्षत्रिय थे।
ईसा पूर्व चौथी सदी के काव्यायन, महाभारत तथा अशोक के शिलालेखों के अनुसार चौलों का प्रारम्भिक राज उरियार में था। ईसा की दूसरी शताब्दी में इलारा चौल ने लंका विजय की तथा वहाँ काफी समय तक राज्य किया। फिर उरियार वंश में करिकेला प्रसिद्ध राजा हआ। इसी के वंश में पोरुनर किला राजसूय यज्ञ किया। ई. तीसरी व चौथी सदी में चौलों की शक्ति कमजोर पड़ गई तथा ये सामंत मात्र रह गए।
महाभारत व अशोक के शिलालेखों के अनुसार पांड्य के दूसरे भाई चौड़ का वंश चौल वंश कहलाया है। इस वंश का राज्य उत्तर-पश्चिम पेट्रनार नदियों के बीच में फैला हुआ था जिसमें तंजौर और त्रिचनापल्ली के जिले तथा पुटुकोट्टा का भाग शामिल था। इनकी राजधानी गंगकोड चोडरपुरम् जिला-त्रिचनापल्ली थी।
शिलालेखों से ज्ञात होता है कि चौल, चोरा और पांड्य जो स्वतन्त्र राज्य थे, का अस्तित्व उत्तरी और दक्षिणी भारत में भारी उथल-पुथल के बावजूद भी शताब्दियों तक बना रहा। उस काल को संगमकाल कहते हैं। संगमकाल का अनुमानत: समय ईसा की प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय शताब्दी में रहा होगा। दक्षिण भारत के उस संगमकाल में चौलों ने महत्तवपूर्ण भूमिका अदा की।
रानाडू व उरियार के चौल- रानाडू (गुडप्पा जिला) के तेलगू चौल पल्लवों, चालुक्यों व राष्ट्रकूटों के सामंत थे। करीब नवीं शताब्दी तक अप्रसिद्धि में रहे चौल ने उरियार में सामंत के रूप में महत्तवपूर्ण भूमिका निभाई तथा अपना नाम और परम्परा को जीवित रखा। इनकी प्रारम्भिक राजधानी करिकल्ला थी।