तंजौर के चौल और विजयल्ला (विजयराज)-( ई.850 से ई.871)
चौल वंश का वास्तविक इतिहास नवीं सदी के द्वितीय चतुर्थ से प्रारम्भ होता है जब विजयल्ला सामंत से राज्य प्रमुख के रूप में उभर कर सामने आता है।
विजयल्ला (विजयराज)-( ई.850 से ई.871)
तंजौर के चौलवंश का संस्थापक विजयल्ला, पल्लव सामंत था। उसके वंश ने दो शताब्दियों तक शासन किया। विजयल्ला उरियार के निकट शक्ति में आया, जो संगमकाल में चौलों की राजधानी था। एक शिलालेख में पाराकेशरी विजयल्ला चौलदेव का उल्लेख मिलता है। विजयल्ला के बाद चौल राजा भी पाराकेशरी व राजकेशरी का खिताब अपने नाम के साथ लगाते रहे हैं। हालांकि वंशावली के आधार पर उरियार शासकों (करिकल्ला व उसके उत्तराधिकारियों से संबंध स्थापित नहीं होता, फिर भी उरियार क्षेत्र में चौलवंश का अभ्युदय महत्त्वपूर्ण है। विजयल्ला सम्भवत : ई. 850 से ई. 871 तक तंजौर का शासन करता रहा।
विजयल्ला ने मुत्तरयार से तंजौर जीती, जिसका मुख्यालय तंजौर के निकट संदली था। ये पहले पल्लवों के और बाद में पांड्यों के शासक थे। पांड्यों व पल्लवों के खुले संघर्ष में विजयल्ला ने अपने पल्लव शासक की ओर से तंजौर पर विजय प्राप्त की। विजयल्ला ने संभवत: कावेरी क्षेत्र में अनिश्चितता का लाभ भी उठाया। तंजौर विजय के बाद उसने दुर्गा के मन्दिर का निर्माण कराया। वह स्वयं शैव मतावलम्बी था तथा उसके अनुयायी भी शैवमत के अनुयायी थे। उसने जिन क्षेत्रों पर अधिकार किया, वे वैलारनदी के उत्तर दक्षिण के मध्य तथा कावेरी व कोलेरुन के निचले क्षेत्रों के भाग थे।