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सूरजमल सांभरिया

 

सूरजमल सांभरिया

स्वाधीनता संग्राम की ज्वाला को प्रज्वल्लित करने वाले राष्ट्रीय वीरों में गुजरात प्रान्त के भूतपूर्व ईडर राज्य के मुड़ेटी स्थान के स्वामी सूरजमल का प्रमुख स्थान है। ठाकुर सूरजमल चौहान की सांभरिया शाखा में उत्पन्न हुए थे. चौहान कुल के एक घटक का राजस्थान के सांभर प्रदेश पर शासन हुआ। सांभर पर दीर्घकाल तक राज्य करने के कारण सांभरिया चौहान कहलाये। ठाकुर सूरजमल सांभरिया शाखा का वीर पुरुष था। वह ईडर राज्य के आठ प्रमुख ठिकानों में मुड़ेटी का अधिपति था।

ठाकुर सूरजमल महान देशभक्त, उदार और परमवीर था। उसे अपने अदि पुरुषों चहुवानों, पृथ्वीराज, रायसल मऊ, भारत सम्राट पृथ्वीराज, हठीले हम्मीर, कान्हड़दे जालौर, अचलदास गागरौन अदि की शौर्य-गाथाएँ प्रिय लगती थी। अंग्रेजों ने निर्बल बादशाह बहादुरशाह को अपदस्थ कर मरहठा शक्तियों को धराशायी कर दिया था। भारतीय राजाओं से सुरक्षा संधि कर ब्रिटिश प्रभुत्व स्थापित कर लिया था। वे भारतीय राजाओं के शासन में हस्तक्षेप करने लगे. ठाकुर सूरजमल अंग्रेजों की उक्त दखलंदाजी, राज्यों में हस्तक्षेप और भारत पर उनका आधिपत्य अनिष्टकारी मानता था। वह स्वभाव से स्वतंत्र, दयालु, दानी और मर्यादा-प्रेमी था। अंग्रेजों के बढ़ते हुये प्रभाव और आतंक के प्रति सजग था। उसने अंग्रेज शासित और अंग्रेज समर्थक अन्य राज्यों में धावे मारकर धन लूटना और गरीब लोगों में बांटकर अराजकता पैदा करना प्रारम्भ कर दिया। वह कोली, भील और अपने राजपूत योद्धाओं को साथ लेकर अंग्रेजी राज्य में छापे मारता और प्राप्त धन जनता में बाँट देता था।

उन्हीं दिनों में सन 1835 में ईडर के राठौड़ नरेश करणसिंह का निधन हो गया। करणसिंह की तीन रानियां सती होना चाहती थी, लेकिन अंग्रेजों ने सती निषेध कानून लागू कर दिया, जिसके कारण अंग्रेजों ने उनको सती होने से रोक दिया.

अंग्रेज सरकार के प्रतिनिधि मि. ओरिस्कन ने इसे ब्रिटिश सरकार की महान अवज्ञा समझी और हरसोल की छावनी से कैप्टन लार्डनर सहित ब्रिटिश सेना बुलाकर अहमदनगर को घेर लिया। रानियाँ सती होने के अपने संकल्प पर दृढ थी। अंग्रेज शहर को चारों ओर से घेरे हुए थे। तीन दिन तक महाराजा का शव राजमहल में रखा रहा। तभी ठाकुर सूरजमल को जैसे तैसे इस घटना का समाचार मिला. वीरवर सूरजमल तो अंग्रेज शासन के विरुद्ध झगड़ ही रहा था। सतियों के आव्हान का सुअवसर वह कैसे खोता? उसने तत्काल अपनी सेना एकत्र की और अहमदनगर की ओर प्रयाण किया। अर्द्ध रात्री में अंग्रेजों की रक्षा व्यवस्था को भंगकर राजकीय श्मशान भूमि पर तीनों रानियों को सती होने का अवसर दिया। अंग्रेजों की रक्षा पंक्ति से उनका युद्ध हुआ। अंग्रेज सेना के कई सैनिक मारे गये। सूरजमल के भी अनेक घाव लगे। उनका सेनापति राठौड़ रतनसिंह घायल होकर होकर रणखेत रहा।

ब्रिटिश एजेंट ओरिस्कन सूरजमल की रण योजना से हतप्रभ हो गया। वह शासन की अवज्ञा और अपमान से क्रोधित हो उठा। उसने ठाकुर सूरजमल को जीवित अथवा मृत पकड़ने के लिए पुरस्कार की घोषणा की, उसके आश्रय स्थलों पर आक्रमण किये। लेकिन सूरजमल उनकी पकड़ में नहीं आया। वह अंग्रेजों सैनिक शिविरों पर छापे मारने लगा।

मातृभूमि की स्वतंत्रता के उस अनन्य पुजारी के संगठन में भील, कौली और अन्य राजपूत योद्धा भी सम्मिलित होने लगे। राजस्थान और गुजरात में सूरजमल के पराक्रम, साहस और देशभक्ति की सर्वत्र प्रशंसा की जाने लगी। परिणामतः ओरिस्किन की पराजय से क्षुब्ध कैप्टन डेलमैन के नायकत्व में अंग्रेजों ने अपनी सुशिक्षित घुड़सवार सेना भेजी और उनकी सहायतार्थ गायकवाड़ की सेना भी भेजी गई। सूरजमल ने भी उचित तैयारी की और तोता ग्राम के समीप युद्ध के लिए आ डटा भयंकर युद्ध हुआ। घोड़ों के कोलाहल, वीरों की ललकारों और शस्त्रों की परस्पर टकराने की ध्वनि से पृथ्वी व आकाश में भय व्याप्त हो गया. अपनी सुरक्षित सेना और राजमद में उन्मत्त अंग्रेज सेनानायक को अपने सैंकड़ों सैनिकों के प्राण गंवाकर पराजित होकर भागना पड़ा. इस युद्ध से गुजरात के सर्वोच्च अंग्रेज अधिकारी ओरिस्किन की प्रतिष्ठा और अंग्रेजों की बहादुरी की पैठ गुजरात से उठ गई.

सूरजमल जैसा प्रचंड वीर था वैसा ही अति उदार था। वीरता और उदारता दोनों में वह बेजोड़ था। अंग्रेजों और उनके हिमातियों को लूटकर गरीबों में बांटना उसका स्वभाव बन गया था। प्रजा के शोषकों से धन छीनकर शोषित प्रजा में ही बांटने के उसका नाम आज प्रातः स्मरणीय बन गया।

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