राव रामबक्ससिंह बैस
बैसवाड़ा के राजा राव रामबक्ससिंह ने सन 1857 ई. क्रांति में ईस्ट
इंडिया कम्पनी की दमनकारी नीति एवं अत्याचारों के खिलाफ हथियार उठाकर अंग्रेजों का
मुकाबला किया था. उत्तरप्रदेश के रायबरेली, उन्नाव तथा प्रतापगढ़ जिलों को बैसवाड़ा
कहा जाता है. सम्राट हर्षवर्धन की वंश परम्परा में बैसवाड़ा राजा शालिवाहन व राजा
त्रिलोकचन्द हुए थे. इन्हीं त्रिलोकचन्द के वंशज "त्रिलोकचन्द बैस"
राजपूत कहलाते है. महाराज त्रिलोकचन्द के ही वंश में जिला उन्नाव के अंतर्गत
डोडिया खेड़ा राज्य के अंतिम राजा राव रामबक्ससिंह हुए थे. डोडियाखेड़ा रियासत चौदह
सौ परगनों की थी. उस समय इस रियासत में दो-ढाई सौ गांव थे. उत्तरप्रदेश के उन्नाव
नगर से साठ किलोमीटर की दूरी पर डोडियाखेड़ा स्थित है. डोडियाखेड़ा राव रामबक्ससिंह
के राज्य की राजधानी थी.
सन 1857 ई. में अंग्रेजों ने तीन बार राव रामबक्ससिंह की रियासत पर
हमला किया था. इन युद्धों में राव रामबक्ससिंह ने अंग्रेजी सेना के छक्के छुड़ा दिए
थे. अंग्रेजों को पराजय का मुंह देखना पड़ा. सन 1858 ई. में रामबक्ससिंह के पास
संसाधन समाप्त हो गये तो वे अपनी रियासत को छोड़कर वाराणसी चले गये और वहां साधु का
वेश धारण करके रहने लगे. उनको पकड़ने के लिए अंग्रेज सरकार ने आठ हजार रूपये का
ईनाम रखा था. इसी ईनाम के लालच में आकर राजा के एक साथी ने उनका भेद अंग्रेजों को
दे दिया और वे गिरफ्तार कर लिए गये. अंग्रेजों ने उन पर ब्रिटिश शासन के विरुद्ध
विद्रोह का आरोप लगाकर 28 दिसम्बर सन 1859 ई. को डोडियाखेड़ा से पांच किलोमीटर दूर
बक्सर नामक स्थान पर एक वृक्ष पर उन्हें फांसी दे दी.
इस प्रकार राव रामबक्ससिंह ने वीरगति प्राप्त की. ऐसे महान देशभक्त को देशवासियों ने भुला दिया. जबकि उन्होंने स्वाधीनता की अलख जगाने व अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष करने के साथ कई जन-कल्याण के कार्य करवाए थे. सन 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों को छकाने वाले राव रामबक्ससिंह का इस क्षेत्र में बड़ा प्रसिद्ध नाम है.