राजा उमरावसिंह
राजा उमरावसिंह का जन्म रांची के पास गंगा-पातर गांव में हुआ था. यह
गांव रांची से 25 मील दूर ओरमांझी की उत्तर-पश्चिम घाटी में बसा हुआ है. राजा
उमरावसिंह इस क्षेत्र के 12 गांवों के जमींदार थे. उनको ओरमांझी का राजा कहा जाता
था. यह गांव सन 1857 की क्रांति का एक महत्त्वपूर्ण रणक्षेत्र रहा था.
राजा उमरावसिंह ने सन 1857 की क्रांति का उद्घोष अपने राज्य के
क्षेत्र चुटूपालू घाटी से प्रारम्भ किया था. 31 जुलाई सन 1857 को हजारीबाग के पास
मेजर ग्राहम की सेना पर माधवसिंह के नेतृत्व में दो तोपों के साथ आक्रमण कर छोटा
नागपुर पठार में क्रांति का शंखनाद किया था. राजा उमरावसिंह अंग्रेजों के निरंकुश
और शोषित शासन तथा उनके व्यवहार से नाराज थे. उन्होंने व उनके भण्डारी शेख भिखारी
ने विद्रोही सैनिकों का समर्थन किया. इस विद्रोही सेना ने 2 अगस्त 1857 को रांची शहर पर कब्ज़ा कर लिया. छोटा
नागपुर का कमिश्नर डाल्टन भाग कर बगोदर चला गया. इस विद्रोही सेना ने बड़कागढ़ के
राजा विश्वनाथशाहदेव को छोटा नागपुर का गवर्नर घोषित कर दिया. राजा उमरावसिंह ने
रांची पहुँचने के जितने मार्ग थे उनको ध्वस्त कर दिया था. जिससे अंग्रेज पुन:
रांची न पहुँच सके.
सन 1857 की क्रान्ति में राजा उमरावसिंह के परिवार के सदस्य उनके छोटे
भाई घासीसिंह भण्डारी, दीवान शेख भिखारी सभी क्रान्तिकारियों में शामिल हो गये थे.
उन्होंने मार्ग ध्वस्त व अवरुद्ध कर दिया था. कमिश्नर डाल्टन ने बगोदर में मार्ग
अवरुद्ध की खबर सुनी तो वह आग बबूला हो गया. इसी बीच विद्रोही नेता विश्वनाथ ने
रामगढ घाटी में दो तोपें लगाकर नाकेबन्दी कर दी थी. इस घटना से भयभीत होकर रामगढ
के राजा शम्भूनाथसिंह ने राजभवन के फाटक बंद करवा दिये. राजा शम्भूनाथसिंह
गुप्तरूप से अंग्रेजों से मिले हुए थे और उन्होंने अपनी रक्षा के लिए लार्ड केनिंग
को सूचना भेजी. गवर्नर जनरल लार्ड केनिंग ने तार द्वारा राजा शम्भूनाथसिंह को
सूचित किया कि उनकी रक्षा के लिए यूरोपीय सेना भेजी जा रही है. कमिश्नर डाल्टन ने
ओरमांझी के राजा उमरावसिंह को बगोदर बुलाया. परन्तु राजा उमरावसिंह उससे मिलने
नहीं गये. क्योंकि छोटा नागपुर स्वतंन्त्र हो चुका था.
राजा विश्वनाथशाहदेव और राजा उमरावसिंह डोरंडा की सेना की सहायता से
छोटा नागपुर की स्वतंत्र सरकार का कामकाज कुशलतापूर्वक चला रहे थे. इसी समय राजा
कुंवरसिंह परमार का सन्देश डोरंडा पहुंचा, जिसमें उन्होंने जगदीशपुर पराजय 10
अगस्त 1857 के बाद डोरंडा सेना को रोहतासगढ़ भेजने का अनुरोध किया था. रोहतासगढ़ जा
रही डोरंडा की सेना का अंग्रेजी सेना से 2 अक्टूबर 1857 को चतरा मैदान में घमासान
युद्ध हुआ. जिसमें दुर्भाग्य से डोरंडा सेना की पराजय हुई. उसके दो साहसी नेता जयमंगल
पांडे और नादिर अलीखां को पकड़ कर फांसी दे दी गई. इससे अंग्रेजी सेना की शक्ति बढ़
गई. गवर्नर जनरल लार्ड केनिंग द्वारा भेजी गई यूरोपीय सेना ने 10 हजार मजदूरों की
सहायता से आठ घन्टे की कोशिश के पश्चात 20 सितम्बर को रामगढ की घाटी को पार कर
लिया.
डोरंडा की सेना रांची खाली कर चुकी थी. रांची खाली पड़ी थी. ऐसी अनुकूल
स्थिति में जनरल डाल्टन ने रांची पर पुन: कब्ज़ा कर लिया. इस रांची अभियान में
पिठौरिया के राजा जगतपालसिंह और छोटा नागपुर के राजा जगन्नाथ शाहदेव ने अंग्रेजों
की भरपूर मदद की थी. किन्तु विश्वनाथशाहदेव और सिंहभूमि के राजा अर्जुनसिंह ने
अंग्रेजों को छोटा नागपुर में चैन से नहीं रहने दिया. छोटा नागपुर में सन 1861 तक
आजादी की लड़ाई जारी रही.
अंग्रेज कमिश्नर डाल्टन ने राजा उमरावसिंह, उनके भाई घासीसिंह और
दीवान शेख भिखारी को पकड़ने के लिए मेजर मैक्डोनाल्ड को मद्रासी फ़ौज के साथ ओरमांझी
भेजा. तीनों देशभक्तों को धोखे से पकड़ लिया गया और रांची लाया गया. वहां से
चुटूपालू घाटी लाकर बिना मुकदमा चलाये ही 8 जनवरी 1858 को पेड़ की डालियों से
लटकाकर फांसी दे दी गई. इस तरह देश की स्वाधीनता के लिए अंग्रेजों को नाकों चने
चबवाने वाले वीर सदा सदा के लिए मातृभूमि की गोद में चिरनिंद्रा में सो गए.