ठाकुर दौलतसिंह राठौड़
भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र की
जनता ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया था. इस क्षेत्र में हुई कई लड़ाईयों में क्रांतिकारियों
ने अंग्रेजी सेनाओं को धूल चटाकर भारत माँ का मस्तक ऊँचा कर दिया था. देवास जिले
के ठाकुर दौलतसिंह राठौड़ मालवा के इन शूरवीर एवं देशभक्त क्रांतिकारियों में
अग्रणी थे. उन्होंने अंग्रेजी सेना के पाँव उखाड़ दिए थे. उन्हें धोखे से सतवास में
पकड़कर फांसी के फन्दे पर झुला दिया गया था.
ठाकुर दौलतसिंह के पूर्वज रघुनाथसिंह ने राघोगढ़ बसाया था. इसी परिवार
में जन्में दौलतसिंह ने अंग्रेजों के शासन को समाप्त कर मातृभूमि को स्वाधीन कराने
का संकल्प लिया था. इस राजघराने की कन्या का विवाह राजगढ़ जिले की खिचड़ीपुर रियासत
के राजा से हुआ था. राठौड़ क्षत्रिय वंश के इस राजघराने का सामाजिक दृष्टि से बड़ा
सम्मान था. राघोगढ़ रियासत का राजकाज संभालने के बाद दौलतसिंह ने राज्य की दशा
सुधारने एवं उसकी सैनिक शक्ति बढाने के अनेक प्रयास किये. उन्होंने अपने सैनिकों
के प्रशिक्षण के लिए केंद्र स्थापित किये. उन्होंने अपनी सेना में क्षत्रिय और
किसानों के परिवारों के युवकों को भर्ती किया था. दौलतसिंह की राघोगढ़ रियासत में
बीस गांव शामिल थे. रियासत की कुल वार्षिक आय नौ लाख रूपये थी.
सन 1857 के स्वाधीनता संग्राम की तैयारी का सन्देश दौलतसिंह को मिल
चुका था. वह 31 मई 1857 को क्रांति के प्रारम्भ होने की प्रतीक्षा कर रहे थे.
राघोगढ़ की गढ़ी क्रांतिकारियों के राजनीतिक विचार-विमर्श का केंद्र बन चुकी थी. इस
बीच सेना का खर्च बढ़ता गया और धन की कमी आ गई. दौलतसिंह ने ऐसी स्थिति में सामरिक
और ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण सतवास के किले पर आक्रमण कर उस पर कब्ज़ा कर
लिया. इस किले के खजाने से उन्हें बहुत सा धन मिला, जिससे क्रांतिकारी सेना के
सैनिकों को वेतन वितरित किया गया. सतवास विजय से दौलतसिंह की शक्ति बढ़ गई थी.
ठाकुर दौलतसिंह की बढ़ी शक्ति को देखकर सिन्धिया, होल्कर और अंग्रेज सतर्क हो गये.
उसी समय इन्दौर की मऊ छावनी में देशी पलटन के सैनिकों ने विद्रोह कर दिया. इन्दौर
का रेजिडेन्ट कर्नल हेनरी डूरेंड 200 घुड़सवारों और 300 भील सैनिकों को लेकर भाग
खड़ा हुआ. वह मंडलेश्वर जाना चाहता था, परन्तु मार्ग भटक कर राघोगढ़ की ओर चला गया.
इधर ठाकुर दौलतसिंह को सूचना मिली कि कर्नल हेनरी डूरेन्ड सेना लेकर राघोगढ़ की ओर
बढ़ा चला आ रहा है. उन्होंने तत्काल डूरेन्ड की सेना पर आक्रमण कर दिया और दोनों
सैन्य टुकड़ियों के मध्य घमासान युद्ध हुआ, जिसमें उनकी विजय हुई. कर्नल हेनरी
डूरेन्ड को जान बचाकर भागना पड़ा.
कुछ समय पश्चात् अंग्रेजों ने अपनी सैन्य शक्ति बढाकर तैयारी के साथ
राघोगढ़ पर आक्रमण किया. अंग्रेजों की सेना के पास तोपखाना भी था. इस तोपखाने की
तोपों द्वारा राघोगढ़ की गढ़ी की एक दिवार को ध्वस्त कर दिया गया. अंग्रेजों की
शक्तिशाली सेना के आगे दौलतसिंह टिक न सके, उनके अनेक सैनिक हताहत हुये और उन्हें
राघोगढ़ की गढ़ी छोड़कर भागना पड़ा. दौलतसिंह राघोगढ़ से भागकर आकिया (थाना खुरैला जिला
इन्दौर) में एक पटेल के यहाँ शरण ली.
ठाकुर दौलतसिंह को पकड़ने के लिए इन्दौर के रेजिडेन्ट द्वारा 2 नवम्बर
1857 को कई स्थानों को पत्र भेजकर एक विज्ञप्ति प्रकाशित की गई, जिसमें घोषणा की
गई थी कि "ठाकुर दौलतसिंह को पकड़वाने वाले व्यक्ति को दो हजार रूपये ईनाम
दिया जायेगा. इसी लालच में ठाकुर दौलतसिंह को विश्वासघातियों द्वारा धोखा देकर
पकड़वा दिया. उन्हें गुना लाया गया. अंग्रेजों ने ग्वालियर के सिन्धिया की सहायता
से गुना में ही उन्हें फांसी दे दी.
इस प्रकार एक क्षत्रिय वीर ने मातृभूमि पर बलिदान होकर देशभक्ति की
मिसाल कायम करते हुए देश के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अपना नाम दर्ज करवा
लिया.