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अमरसिंह जगदीशपुर बिहार : 1857 स्वतंत्रता संग्राम के योद्धा

 

अमरसिंह जगदीशपुर बिहार

जगदीशपुर के राजा कुंवर सिंह परमार की मृत्यु के बाद उनके छोटे भाई अमरसिंह परमार गद्दी पर बैठे. अमरसिंह ने गद्दी पर बैठने के तुरन्त बाद अपनी सेना को संगठित कर आरा पर चढ़ाई कर दी. जनरल डगलस और जनरल लगर्ड की सेनाएं गंगा नदी पार आरा राज्य को बचाने के लिए आ पहुंची.

3 मई 1858 को राजा अमरसिंह की सेना का जनरल डगलस और जनरल लगर्ड सेना के साथ प्रथम संग्राम हुआ. उसके बाद बिहिया, हातमपुर, दलीलपुर आदि अनेक स्थानों पर संग्राम हुआ. अमरसिंह ने उस युद्ध नीति का प्रयोग किया जो राजा कुंवरसिंह द्वारा शुरू की गई थी. इस युद्ध नीति से अमरसिंह बार बार अंग्रेजी पर भारी पड़े. वे उन्हें हराते रहे और भारी हानि पहुंचाते रहे. जनरल लगर्ड ने बार बार की हार से क्षुब्ध होकर 15  जून 1858 को इस्तीफा दे दिया. लड़ाई का पूरा भार जनरल डगलस पर आ गया. उसने अमरसिंह को परास्त करने की कसम खाई. जनरल डगलस के पास सात हजार सेना थी. जून, जुलाई, अगस्त, सितम्बर महीने बीत गये, परन्तु डगलस अमरसिंह को परास्त न कर सका. विजयी अमरसिंह ने आरा पर अधिकार कर जगदीशपुर रियासत का आधिपत्य बनाये रखा.

जगदीशपुर पर हमला- अंग्रेजी सेनाओं ने जगदीशपुर पर सात तरफ से सात सेनाओं के साथ एक साथ हमला कर दिया. 16 अक्टूबर 1858 को अंग्रेजी सेनाओं ने जगदीशपुर को चारों ओर से घेर लिया. अमरसिंह ने देखा कि इन विशाल सेनाओं से सीधे युद्ध में विजय असंभव है. वे अपने कुछ विश्वस्त साथियों के साथ युद्ध स्थल को चीरते हुए निकल गये. जगदीशपुर पर अंग्रेजों का कब्ज़ा हो गया.

नौमदी का युद्ध- कम्पनी की सेना ने अमरसिंह का पीछा किया. 19 अक्टूबर को कम्पनी की सेनाओं ने अमरसिंह को नौमदी गांव में घेर लिया. अमरसिंह के पास केवल चार सौ सिपाही थे. अमरसिंह ने भयंकर युद्ध लड़ा और उनके तीन सौ सिपाही युद्ध में शहीद हो गये. शेष बचे सौ सिपाहियों ने प्राणों की बाजी लगाकर अंग्रेजी सेना को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया. अंत में अमरसिंह अपने दो साथियों के साथ युद्ध मैदान से निकल गये. उनके सौ वीर सिपाही वहीं कटकर मातृभूमि की स्वाधीनता के लिए संघर्ष करते हुए शहीद हो गये. इस युद्ध में कम्पनी सेना के मरने वाले सैनिकों की संख्या बहुत अधिक थी.

कम्पनी सेना ने फिर अमरसिंह का पीछा किया. एक बार कुछ सवार अमरसिंह के हाथी तक पहुँच गये. हाथी पकड़ लिया गया, किन्तु अमरसिंह हाथी से कूद कर निकल गये. अमरसिंह अब कैमूर के पहाड़ों में पहुँच गये. शत्रु ने वहां भी उनका पीछा किया. अमरसिंह ने हार स्वीकार नहीं की. कैमूर के पहाड़ों में अमरसिंह का कोई पता नहीं चला वे कहाँ गायब हो गये. जनरल डगलस ने अमरसिंह की वहां भी खोजबीन की और उन पर हमला किया. अमरसिंह की समस्त सेना अस्त-व्यस्त हो गई थी. अमरसिंह के प्रमुख सहयोगी निशानसिंह व हरकृष्ण सिंह को अंग्रेजों ने कैद कर लिया था और दोनों को फांसी दे दी गई थी.

अमरसिंह क्रांति का संचालन करने के लिए इधर-उधर भटकते रहे. सन 1859 को कर्नल रैमजे को सूचना मिली कि अमरसिंह नेपाल की तराई में पहुँच गए है. अंग्रेजों ने नेपाल के राणा जंग बहादुर को निर्देश दिए कि वह अमरसिंह को पकड़ कर हमारे सुपुर्द करे. दिसम्बर 1859 को राणा जंगबहादुर ने विश्वासघात कर अमरसिंह को गिरफ्तार कर अंग्रेजों को सौंप दिया. अमरसिंह को गोरखपुर जेल में रखा गया. जहाँ अमरसिंह ने बीमार होकर 5 फरवरी 1860 को प्राण त्याग दिये.

अमरसिंह ने अपने शक्तिशाली शत्रु के आगे ना झुककर और सतत संघर्ष कर क्षत्रिय परम्परा निभाई और देश के लिए अपने प्राणों का बलिदान देकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अमर हो गये.        

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