अंगदसिंह और मंगतराव
6 सितंबर सन 1857 ई. को अंग्रेजों ने पार पट्टी क्षेत्र में क्रांतिकारियों को कुचलने के लिए एक सेना भेजी. अंग्रेजी फौजें नदी घाटों से भीषण युद्ध के बाद भी क्षेत्र में दाखिल नहीं हो सकी. अत: अंग्रेजी सेना द्वारा बीच की पट्टी में आवागमन हेतु कच्ची सड़क का निर्माण कराया, जिसके द्वारा सेना भेजी जा सके. नई सड़क से दाखिल अंग्रेजों और उनके मित्र सिंधिया की सम्मिलित सेनाओं ने मध्य सरसई और मधुपुर क्षेत्र में क्रांतिकारी वीरों से भीषण युद्ध किया. सीमित साधनों के होते हुए भी क्रांतिकारी मरने मारने की भावना से लड़े और शौर्य का चरम प्रदर्शन किया. सिन्धिया और अंग्रेजी फौजों ने जीत के बाद सामान्य जनता के दो सौ से अधिक लड़ाकों को अनैतिक रूप से फांसी पर चढ़ा दिया और बड़े पैमाने पर लूटपाट व आगजनी की थी. वीर यौद्धा अंगदसिंह कुशवाह और मंगत राव प्रमुख क्रांतिकारी यौद्धा थे. जो इन क्रांतिकारियों का नेतृत्व कर रहे थे. इन दोनों को भी फांसी दे दी गई. उनकी शहादत आज भी जनमानस में अपना विशिष्ट स्थान रखती है. बड़े खेद की बात है कि ऐसे वीरों के बारे में जानकारी का कोई साधन नहीं है. केवल मधुपुरा गांव में इन दोनों शहीदों के थान के रूप में स्मारक बने हुए है. यहाँ की जनता आज भी श्रद्धा से याद करती हैअंगदसिंह और मंगतराव : 1857 स्वतंत्रता संग्राम के योद्धा
जनवरी 04, 2022
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