रावत जोधसिंह चौहान मेवाड़ के कोठारिया ठिकाने के जागीरदारी थे.
कोठारिया ठिकाना के जागीरदार मेवाड़ के प्रथम श्रेणी के जागीरदारों में शामिल है.
जोधसिंह ने देश की स्वाधीनता के लिए अंग्रेजों से संघर्ष करने वाले क्रांतिकारियों
को पूरा सहयोग दिया था. जब जोधपुर और अंग्रेजों की सेना ने आउवा पर आक्रमण किया तब
जोधसिंह ने आउवा के प्रसिद्ध क्रांतिकारी ठाकुर कुशालसिंह चाम्पावत की सैनिक
सहायता की थी. इस युद्ध में ठाकुर कुशालसिंह ने किले का कार्यभार ठाकुर पृथ्वीसिंह
को सौंप दिया और स्वयं बाहर निकल कर उदयपुर की तरफ चले गये. वहां कई दिनों तक
जंगलों व पहाड़ों में भटकते रहे. मेवाड़ में किसी भी जागीरदार ने उन्हें अंग्रेजों
के भय के कारण शरण नहीं दी. सलुम्बर के रावत केसरीसिंह ने उनकी सहायता अवश्य की थी
लेकिन उन्हें शरण देने की जिम्मेदारी नहीं ली.
अंग्रेज ठाकुर कुशालसिंह को गिरफ्तार करने के लिए पूरी तरह से उनका
पीछा कर रहे थे. अंत में कोठारिया ठिकाने के रावत जोधसिंह ने उन्हें शरण देकर अपनी
राष्ट्रभक्ति प्रदर्शित की. उन्होंने बिना अंग्रेजों के किसी भय के कुशालसिंह को
अपने पास रखा. जसवन्तराय होल्कर को भरतपुर के राजा ने शरण दी थी, तब अंग्रेजों ने
भरतपुर पर सख्ती की, उसे जानते होने के बावजूद रावत जोधसिंह ने अंग्रेजों के आतंक
से बिना भयभीत हुए राष्ट्र के प्रति अपना कर्तव्य निभाया वह सदैव स्मर्णीय रहेगा.
उनके इस निर्भीक निर्णय पर किसी चारण कवि ने लिखा-
मुरधर छाड़ खुसालसी, भागो चांपो भूप.
रावत जोधे राखिया, रजवट हंदे रूप..
कोठारिया के सरदार रावत जोधसिंह ने आउवा (जोधपुर राज्य का एक ठिकाना) के विद्रोही सरदार ठाकुर कुशालसिंह को अपने यहाँ आश्रय दिया है, ऐसा सन्देह होने पर जून सन 1858 ई. में कोठारिया में जोधपुर से अंग्रेज सेना आई. सेनापति को यह विश्वास दिलाने के लिए कि मेरे यहाँ कुशालसिंह नहीं है, जोधसिंह ने अपना किला दिखला दिया इससे उनका सन्देह दूर हो गया और वे वापस लौट गए. इसके अलावा उन्होंने तांत्या टोपे और आलणीयावास के अजीतसिंह को भी अपने पास रखा था. इस तरह कोठारिया के रावत जोधसिंह ने देश की स्वतंत्रता के लिए की गई क्रांति में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान किया.