ठाकुर बिशन सिंह मेड़तिया, गूलर
देश को अंग्रेजों की परतंत्रता से मुक्त करवाने
में जिन राष्ट्रभक्त वीरों ने सक्रीय भाग लिया था, उनमें राजस्थान के मारवाड़ राज्य के परबतसर परगने के गूलर ठिकाने के
स्वामी बिशनसिंह मेड़तिया का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। ठाकुर बिशन सिंह इतिहास
प्रसिद्ध जयमल मेड़तिया के पुत्र सुरतान के वंशज थे। ठाकुर बिशन सिंह ठाकुर सुरतान
के वंशज ठाकुर बख्तावरसिंह के उत्तराधिकारी थे।
ठाकुर बिशनसिंह स्वतंत्रता का अनन्य प्रेमी, महान देशभक्त, साहसी और वीर पुरुष थे। उनमें वीरता और
कुलाभिमान के साथ साथ संगठन करने की भी अपूर्व बुद्धि थी।
बिशनसिंह ब्रिटिश सत्ता का प्रबल विरोधी होने
के साथ-साथ अपने ही वंश के शक्ति सम्पन्न मारवाड़ नरेश तख्तसिंह के भी विरोधी थे।
महाराजा तख्तसिंह गुजरात के अहमदनगर (ईडर राज्य) से गोद आये थे। तख्तसिंह को राज्य
दिलाने में अंग्रेज सरकार का पूरा हाथ रहा था। ठाकुर बिशनसिंह, महाराजा तख्तसिंह की अंग्रेज परस्त
दुर्बल नीति के कट्टर विरोधी थे और समय-समय पर वह अपना विरोध सरे आम प्रकट करते थे।
उन्हें यह सह्य नहीं था कि रणबंका राठौड़ों का महाराजा कम्पनी सरकार का राजनीतिक प्रभुत्व
स्वीकार करे।
तख्तसिंह ने अंग्रेजों के विरोध की नीति
त्यागने के लिए ठाकुर को समझाया, किन्तु
वह सदैव उनके विरुद्ध ही चलते रहे। महाराजा तख्तसिंह ने ठाकुर बिशनसिंह का
दमन करने के लिए सं. 1910 (ई.सन 1853) में अपने प्रधान कुशलराज सिंघवी को सेना
देकर गूलर भेजा। गूलर दुर्ग को चारों ओर से घेर कर तोपों से गोले दागे गए। ठाकुर
बिशनसिंह ने उस सेना का विरोचित्त सामना किया। दोनों ओर से तोपों, तीरों और बंदूकों के गोलों, बाणों और गोलियों की वर्षा होने लगी।
ठाकुर गूलर ने दुर्ग त्याग कर छापामार युद्ध आरम्भ किया और शक्ति संचय कर पुनः
गूलर पर अपना अधिपत्य स्थापित किया। इससे जोधपुर नरेश की बड़ी अपकीर्ति हुई।
महाराजा तख्तसिंह ने पुनः अपनी सेना गूलर भेजी।
गुलर पर महाराजा का अधिकार हो गया. ठाकुर बिशनसिंह ने अपने सहयोगियों के साथ
मारवाड़ और ब्रिटिश शासित इलाकों में धावे मारने शरू कर दिए।
मारवाड़ का आउवा ठिकाना स्वतंत्रता सेनानियों का
केंद्र स्थान बन चुका था। सं. 1914 वि. (ई.सन 1857) के संग्राम का नेतृत्व मारवाड़
के ठाकुर कुशालसिंह आउवा,
ठाकुर बिशनसिंह गूलर और ठाकुर
शिवनाथसिंह आसोप कर रहे थे। स्वतंत्रता सेनानियों की सेना ऐरनपुरा और डीसा की ओर
से मारवाड़ की ओर बढ़ रही थी। जोधपुर नरेश अंग्रेजों की सहायता कर रहे थे। पोलिटिकल
एजेन्ट सर हेनरी लारेंस के आदेश पर जोधपुर की सेना आउवा की ओर कूच कर रही थी। अंग्रेजों
व जोधपुर की सम्मिलित सेना का विद्रोहियों की सेना कके साथ बिठोड़ा नामक स्थान पर मुकाबला
हुआ। दो दिन के घमासान युद्ध में जोधपुर की सेना के प्रमुख ठाकुर ओनाड़सिंह पंवार
और राजमल लोढ़ा मारे गये। सिंघवी कुशलराज और मेहता विजयमल ने भाग कर जान बचाई। स्वतंत्रता सेनानियों की विजय हुई.
राजकीय सेना की पराजय का समाचार सुनकर अजमेर
में खलबली मच गई। कैप्टिन मेसन एक बड़ी सेना लेकर आउवा पर आया, किन्तु वह इन वीरों के सामने वह टिक
नहीं सका और लड़ता हुआ मारा गया। दूसरे दिन पुनः घमासान हुआ, जिसमें दो हजार अंग्रेजी सेना के
सिपाही मारे गये। यह समाचार सुनकर नसीराबाद, नीमच
और महू तीनों सैनिक स्थानों की छावनियों की सेना आउवा को घेरने के लिए आई। जोधपुर
से भी मदद भेजी गई। एक बार फिर आउवा के रणक्षेत्र में घमासान हुआ।
ठाकुर कुशालसिंह चाम्पावत, ठाकुर बिशनसिंह मेड़तिया, ठाकुर भोपालसिंह चांपावत, ठाकुर हणवन्तसिंह शेखावत, ठाकुर किशनसिंह खींची, देवीसिंह मेड़तिया, हिन्दुसिंह जोधा और नृसिंह तंवर ने
जबरदस्त सामना किया। ब्रिटिश सेना को विचलित कर दिया. ब्रिटिश सेना के अत्यधिक
होने के कारण अंत में स्वाधीनता सेनानियों को आउवा दुर्ग को छोड़ कर पहाड़ों में
जाना पड़ा। एक बार फिर अरावली पर्वतमाला इन वीरों का आश्रय स्थल बनी।
स्वतंत्रता समर के असफल हो जाने पर गूलर ठाकुर
बिशनसिंह, आउवा ठाकुर कुशालसिंह व आसोप ठाकुर
शिवनाथसिंह आदि अपने साथियों सहित बीकानेर की ओर चले गए। अन्य सरदार वहां से
ब्रिटिश प्रान्तों और मारवाड़ में छापे मारते रहे। अन्त में अंग्रेजों को थक कर इन
सरदारों के कथित अपराध क्षमा करने का नाटक रचने को बाध्य होना पड़ा। तब कहीं जाकर
संवत् 1925 वि. में राजपूताने के ए.जी.जी. कर्नल कीटिंग को शान्ति की सांस लेने का
अवसर मिला। इस प्रकार ठाकुर बिशनसिंह मेड़तिया ने अपने ठिकाने गूलर में प्रवेश कर
विश्राम लिया।