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राजा बख्तावर सिंह अमझेरा (मालवा) : 1857 स्वतंत्रता संग्राम के योद्धा

अमझेरा मालवा का एक छोटा सा राज्य था. इस राज्य के शासक जोधपुर के राव मालदेव के पुत्र राव राम के वंशज है. राव राम के वंशज जगन्नाथ शाही मनसबदार थे. उन्हें वि.सं. 1661 में अमझेरा का राज्य मिला. अठारवीं शताब्दी में अमझेरा के राजा ग्वालियर के राजा सिन्धिया के अधीन हो गये थे. सन 1818 ई. में मालवा प्रान्त पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया था. जॉन मेलकम ने अमझेरा के राजा और ग्वालियर के सिन्धिया के मध्य एक समझौता करवाया था. जिसके तहत अमझेरा के राजा ग्वालियर के सिंधिया को 35,000 रूपये प्रतिवर्ष कर के रूप में देंगे. सिंधिया ने अपनी सेना अमझेरा से हटा ली और इस तरह अमझेरा का राज्य स्वतंत्र हो गया.

मई 1857 में जब देश की स्वाधीनता के लिए क्रांति का प्रारंभ हुआ तब जुलाई तक समस्त मालवा प्रदेश में अंग्रेजों के खिलाफ फैला रोष क्रांति में बदल गया और इस तरह इस पूरे क्षेत्र में क्रांति फ़ैल गई. क्रांति के आरम्भ से जून 1858 तक मालवा क्षेत्र के किसी न किसी भाग पर क्रान्तिकारियों का कब्ज़ा रहा. झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, बांदा का नबाब, मन्दसौर का शाहजादा फिरोज, इन्दौर के सआदत खां तथा अमझेरा के राजा बख्तावर सिंह आदि ने अंग्रेजों के विरुद्ध स्वाधीनता संग्राम का बिगुल बजा दिया और लड़ाइयाँ लड़ी. राष्ट्र व धर्म की रक्षा के लिए सिर पर कफ़न बांधकर क्रांतिकारी नेता अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई के लिए तैयार हुए थे. मालवा में सर्वप्रथम अमझेरा के राजा बख्तावरसिंह ने क्रांति का शंखनाद किया था. जिस समय क्रांति का आरम्भ हुआ, उस समय राजा बख्तावर सिंह अमझेरा के स्वतंत्र शासक थे. वह वीर, कर्तव्यनिष्ठ, न्यायप्रिय और स्वाधीनचेता राजा थे. उन्होंने मालवा क्षेत्र से अंग्रेजों का राज्य समाप्त करने का बीड़ा उठाया.

3 जुलाई 1857 को राजा बख्तावर सिंह ने भोपावर अंग्रेज छावनी पर आक्रमण कर दिया था. उनके इस आक्रमण से अंग्रेज सैनिक छावनी छोड़कर भाग गये. अमझेरा के दीवान गुलाबराय सैनिकों सहित भोपावर पहुंचे. मंडला के ठाकुर भवानीसिंह भी तोपों सहित वहां पहुँच गए थे. उन्होंने अंग्रेज अधिकारी को बंदी बना लिया और अंग्रेजों के झंडे को उखाड़ कर फैंक दिया एवं अपना स्वाधीनता का ध्वज फहरा दिया. भोपावर में अंग्रेजों के पास केवल भील सैनिक की टुकड़ी थी जो रात के अँधेरे में अंग्रेजों का साथ छोड़कर जंगल की ओर चली गई. ऐसी स्थिति में अंग्रेज सेनापति हचिंसन भी भोपावर छोड़कर भाग गये. क्रांतिकारी सैनिकों ने सत्रह मील तक उसका पीछा किया. कैप्टन हचिंसन ने भागकर झाबुआ के राजा के यहाँ शरण लेकर अपनी जान बचाई.

उसी समय इन्दौर के होल्कर को समाचार मिला कि अमझेरा के राजा बख्तावरसिंह ने कैप्टन हचिंसन को उनके साथियों सहित बन्दी बना लिया है. श्रीमारी हचिंसन सर राबर्ट हेमिल्टन की पुत्री थी, जिसे होल्कर अपनी बहिन मानते थे अत: उसकी सहायता के लिए होल्कर ने बख्शी खुमानसिंह को एक बड़ी सेना देकर अमझेरा की ओर भेजा. अमझेरा के क्रांतिकारी सैनिक भोपावर के डाक बंगले तथा कम्पनी के धन को लूटकर अमझेरा ले आये.

11 जुलाई को कैप्टन हचिंसन, होल्कर की सेना के साथ भोपावर पहुंचे. होल्कर के आदेशानुसार अमझेरा के राजा ने लूटी हुई सामग्री व तोपें वापस कर दी. अमझेरा के राजा के पास इतनी सैनिक शक्ति नहीं थी कि वे होल्कर और अंग्रेजी सेना का मुकाबला कर सके पर अमझेरा की जनता अंग्रेजों की घोर विरोधी थी, उन्होंने अंग्रेजों को महोबा जाने के लिए रास्ता नहीं दिया. आखिर अंग्रेज दूसरे रास्ते से महोबा पहुंचे. अमझेरा के क्रांतिवीरों ने होल्कर की सेना में देश की स्वाधीनता के लिए क्रांति का बीज बो कर विद्रोह फ़ैलाने का प्रयास किया. राजा बख्तावर सिंह ने अमझेरा के दक्षिण में 7 मील दूर लालगढ़ के किले को क्रांतिकारियों का गढ़ बना लिया था. इस किले तक पहुँचने के लिए घना जंगल पार करना पड़ता था किले का रास्ता बहुत ही विकट था. सुरक्षा की दृष्टि से किले की प्राचीरें बहुत मजबूत बनी थी. कैप्टन हचिंसन जंगल के इस विकट रास्ते को पार कर अपनी सेना सहित लालगढ़ पहुंचा, उसके पहले ही राजा बख्तावरसिंह ने किला खाली कर दिया. वे जंगल में अपने गुप्त ठिकाने पर चले गये, जहाँ से क्रांति का संचालन कर सके. कैप्टन हचिंसन ने होल्कर के साथ मिलकर राजा को पकड़ने की कूटनीतिक योजना बनाई. राजा के कुछ साथियों को धन व जागीर आदि देने का प्रलोभन देकर अपनी ओर मिला लिया. इन देशद्रोही विश्वासघातियों ने राजा के गुप्त ठिकाने का पता हचिंसन को बता दिया.

11 नवम्बर 1857 को लालगढ़ किले के पास घने जंगल से राजा बख्तावरसिंह को उनके गुप्त ठिकाने से गिरफ्तार कर लिया गया. उन्हें वहां से महोबा लाया गया जहाँ उन पर मुकदमें का नाटक कर, बचाव का कोई अवसर दिए बिना फांसी की सजा दे दी गई. मुकदमें के नाटक में झूंठी मौखिक गवाही ली गई और बिना क़ानूनी प्रक्रिया पूरी किये उस न्यायालय से उन्हें सीधे फांसी की सजा सुनवा दी गई थी. इस तरह न्याय का नाटक कर अंग्रेजों ने स्वाधीनता संग्राम के उस वीर क्रांतिकारी राजा को 10 फरवरी सन 1858 को इन्दौर में फांसी पर लटका दिया गया. अमझेरा राज्य को अंग्रेजों ने जब्त कर वहां ब्रितानी शासन कायम कर दिया गया.

अमझेरा की रानी ने अंग्रेजों को पत्र लिखकर मांग की कि उनका पुत्र रघुनाथसिंह निर्दोष है, वह अभी अल्पायु है. अत: रघुनाथसिंह को अमझेरा का राजा बना दिया जाय. परन्तु अंग्रेजों ने कोई सुनवाई नहीं की. अमझेरा का राज ग्वालियर के अंग्रेज भक्त शासक सिंधिया को पुरस्कार स्वरूप दे दिया गया. राज्य का कुछ भाग उन लोगों को जागीर के रूप में ईनाम के तौर पर दे दिया गया, जिन लोगों ने विश्वासघात करके राजा को गिरफ्तार करवाया था.

राजा बख्तावरसिंह ने मातृभूमि की स्वाधीनता के लिए अपने से कई गुना बड़ी ताकत से टकराकर अपने प्राणों की आहुति देकर देश के प्रति अपना कर्तव्य निभाया. उनके इस बलिदान को आज भी क्षेत्र की जनता के साथ पूरा देश श्रद्धा से याद कर नमन करता है.   

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