भाग 3 से आगे .... प्रतिहारों को विदेशी मानना पाश्चात्य विद्वानों ने जब अग्निवंश के वर्णन देखें तब उन्होंने यह धारणा बनाई कि अग्नि के द्वारा जो शुद्ध करने का वर्णन है उसका तात्पर्य यह है कि ये वंश विदेशी थे। इनके भारत में आने के बाद अग्नि के द्वारा शुद्ध करके उन्हें हिन्दू बनाया गया। इतिहासकार वाटसन, फारबस, कम्पबैल आदि के साथ आधुनिक विद्वान् देवदत्त, रामकृष्ण भण्डारकर आदि ने भी यह सोच लिया कि अग्निवंशी गुर्जर तथा विदेशी है और इसलिये उन्होंने अपने आपको अग्नि से शुद्ध होना मान लिया है। जैक्सन तथा स्मिथ भी भण्डारकर की धारणा का समर्थन करते है कि अग्निवंशियों की उत्पत्ति विदेशियों से हुई हैं।
भण्डारकर मानते हैं कि गुर्जर हूणों के साथ ही राजस्थान में आकर बसे थे। ये पहले ‘खजर' कहलाते थे और खजर से ही बाद में इनका नाम 'गुर्जर' प्रचलित हो चला। जनरल कनिंघम गुर्जरों को यूची अर्थात् कुशानवंशी होना मानते है, ऐसा विश्वास है कि ईस्वी पांचवीं व छठी सदी में उन्होंने भारत में प्रवेश किया था। भण्डारकर मानते हैं कि गुर्जरों में भारतीय परम्परा के अनुसार कई विभाग हो गये थे, जैसे-गुर्जर ब्राह्मण, गुर्जर कारीगर, गुर्जर वैश्य, गुर्जर किसान, गुर्जर क्षत्रिय और गुर्जर शूद्र। गुर्जर भारत के अन्य भागों में भी मिलते हैं, काश्मीर में भेड़ पालक अद्यावधि है।
इन समस्त विद्वानों की ये मान्यतायें देखकर अनेक विद्वान यह मानने लग गये है कि हूणों के साथ विदेश से आये हुए गुर्जर (खजर) ही अग्निवंशी थे। दक्षिण के राष्ट्रकूट तथा अरब सौदागरों ने भी प्रतिहारों के लिये गुर्जर शब्द का प्रयोग किया है।
क्रमश :
लेखक : देवीसिंह मंडावा : पुस्तक - प्रतिहारों का मूल इतिहास