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मैं सांडेराव बोल रहा हूँ

मैं सांडेराव बोल रहा हूँ | मैं राजस्थान के गोडवाड़ आँचल के पाली जिले में स्थित हूँ | आजादी से पूर्व मैं शार्दुल सिंघोत राणावत राजपूतों के ठिकाने की राजधानी था | शार्दुल सिंघोत राणावत उदयपुर के महाराणा उदयसिंह जी के एक पुत्र शार्दूलसिंह के वंशज हैं | आज भी इस वंश के वंशज मेरे यहाँ निवास करते हैं | शार्दुल सिंह जी के वंशज बहुत ही वीर और पराक्रमी हुए हैं जिसका गवाह मेरे आँचल में बना यह गढ़ है | इसी गढ़ में रहकर इन वीरों ने इस क्षेत्र पर शासन किया और वीरता के उदाहरण प्रस्तुत किये | 

शार्दुल सिंघोत राणावतों से पहले मेरे यहाँ बालेचा चौहानों का राज्य था, पर महाराणा उदयसिंह जी के एक पुत्र और इतिहास प्रसिद्ध महाराणा प्रताप सिंह के छोटे भाई शार्दूलसिंह ने सांडेराव पर आक्रमण किया और बालेचा चौहानों को हराकर यहाँ अपना राज्य स्थापित किया |

“गोडवाड़ विरासत” नामक इतिहास शोध पत्रिका में लिखा है कि शार्दूलसिंहजी ने मेरे यहाँ वि.सं 1636 में राज्य की स्थापना की थी | गांव में बलेचा चौहान अरजसिंह का स्मारक बना है गांव वालों का दावा है कि इन्हीं अरजसिंहजी चौहान से शार्दूलसिंहजी ने राज्य लिया था |

मेरे ही एक नागरिक महेंद्र पूरी ने अपने एक लेख में अरजसिंह चौहान को उस वक्त के बालेचा चौहान शासक का पुत्र लिखा है, महेंद्र पूरी ने लिखा है कि बालेचा चौहान ठाकुर के कुँवर के द्वारा सादुलसिंह जी से 30 मिनिट तक वीरतापूर्वक युद्ध करते हुए वीरगति प्राप्त होने पर सादुलसिंह जी ने उनकी वीरता के सम्मान मे दुदेली माता मंदिर के सामने भव्य लाल पत्थर की छतरी का निर्माण करवाया |

मेरे प्राचीन नगर परकोटे और दुदेली माता मंदिर के सामने अरजसिंह की स्मारक रूपी छतरी बनी है जहाँ आज भी ग्रामीण मेरे उस वीर शासक की पूजा अर्चना करते हैं और उसे सम्मान देते हैं |

 मेरे आँचल में राणावत ठिकाने के गढ़ के पास एक बड़ा और खुबसूरत जैन मंदिर भी बना है, मेरे ठिकाने के जागीरदारों को ज्यूडिसियल पावर भी थे, मेरे यहाँ के जागीरदार एक बड़ा सा जूता रखते थे, ज्यादातर अपराधियों को उस जूते से सजा दे दी जाती थी, गढ़ में जेल आज भी मौजूद है जिसमें दुर्दान्त अपराधियों को रखा जाता था |

गांव के बाहर तालाब के किनारे कई योद्धाओं के स्मारक बने हैं जो साबित करते हैं कि सांडेराव के योद्धाओं ने विभिन्न समय में अपनी मातृभूमि के लिए बलिदान दिए हैं | गांव वाले आज भी इन स्मारकों पर योद्धाओं की पूजा अर्चना करते हैं | हम जब इन स्मारकों की कवरेज करने गए, तब कभी ग्रामीण वहां एकत्र थे, कुछ युवा उन वीरों की प्रतिमाओं की पूजा कर रहे थे तो गांव की महिलाएं उन योद्धाओं पर गीत गा रही थी |

गांव वाले जिस बालेचा चौहान से राज्य लेने की बात करते हैं, गढ़ के पुराने परकोटे के पास उनकी छतरी मौजूद है, गांव के लोगों ने बताया कि एक योद्धा को सम्मान देने के लिए राणावत शासकों ने उनका स्मारक बनवाया और आज भी उसका उचित रख रखाव व सम्मान करते हैं|

मेरे यहाँ राणावत ठिकाना कायम करने वाले महाराणा प्रताप के छोटे भाई शार्दूलसिंह के लगभग 15 वंशजों ने समय समय पर यहाँ शासन किया | इन्डियन राजपूतस डॉट कॉम वेबसाइट पर उपलब्ध सांडेराव ठिकाने की वंशावली के अनुसार 1956 में यहाँ के आखिरी जागीरदार भीमसिंह जी थे, जिनके दो बेटियां है | भीमसिंह जी के भाई तखतसिंह जी व जालमसिंह जी थे |

आज भी ठिकाने के गढ़ में पूर्व जागीरदारों के वंशज निवास करते हैं और मेरे आँचल में सभी जाति, धर्म और वर्गों के लोग आपसी सामंजस्य और सौहार्दपूर्ण वातावरण में रहते हैं | मेरे आस-पास का प्राकृतिक सौन्दर्य भी देखने लायक है इसलिए कभी आप पाली जिले में खासकर जवाई बान्ध घुमने आये तो मेरे यहाँ के प्राकृतिक दृश्यों को देखना भी ना भूलें |

धन्यवाद | जय हिन्द, जय भारत जय राजपुताना |

     

 

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