रणसी गांव का इतिहास : History of Ransi Gaon | जोधपुर की बिलाड़ा तहसील में बसा है रणसी गांव | रणसी गांव बहुत ही प्राचीन गांव है | गांव में बने तालाब किनारे कुछ स्मारक रूपी छतरियां बनी है, जिनके बारे में कहा जाता है कि यह पालीवाल ब्राह्मणों की है | ये स्मारक साबित करते हैं कि इस गांव में कभी पालीवाल ब्राह्मणों के आवास थे | गांव में सदियों पुरानी पत्थर की देवली भी गड़ी है जिसे स्थानीय लोग राणीसती की देवली कहते हैं लेकिन वर्तमान में मिले नये ऐतिहासिक साक्ष्यों के बाद गांव के ही योगेन्द्रसिंह ने हमें बताया कि यह देवली रूपी स्मारक संत रणसी जी तंवर की है | नरेना युद्ध के बाद संत और उस क्षेत्र के शासक रणसी जी तंवर के पुत्र अजमालजी रामदेवरा जाने से पहले इस गांव में रुके थे और रणसी जी की याद में यह देवल उन्होंने यहाँ गाड़ा था | रणसी जी के इसी देवल के बाद इस गांव का नाम रणसी गांव पड़ा |
वर्तमान में हिन्दू धर्म की विभिन्न जातियों के साथ मुसलमान धर्मावलम्बी भी यहाँ निवास करते हैं | गांव में आज भी जातीय व सांप्रदायिक सौहार्द कायम है | आजादी से पूर्व यह गांव मारवाड़ रियासत के अधीन चांपावत राठौड़ों की जागीर था | आज भी गांव में जागीरदार परिवार के वंशजों के साथ परिहार वंश के राजपूत भी निवास करते हैं | गांव ने देशभर में अश्वपालन व साफे के व्यवसाय में ख्याति पाई है | यहाँ के चांपावत परिवार जहाँ अश्वपालन व मारवाड़ी घोड़ों की नस्ल सुधार में अव्वल है वहीं परिहार राजपूतों की देश के विभिन्न भागों में दो सौ से ज्यादा दूकाने हैं | राजनीति व प्रशासनिक सेवाओं के बाद सेना में भी इस गांव के कई अधिकारी सैनिक सेवाएँ दे रहे हैं | होटल व्यवसाय में भी इस गांव के लोग काफी हैं जिनमें उम्मेदसिंह की पांच सितारा होटलें है |
गांव के इतिहास के बारे में ठाकुर बहादुरसिंह जी ने हमें बताया कि चांपाजी राठौड़ के पुत्र भैरूदासजी रणसी गांव चले आये और यही रहने लगे | भैरूदासजी के पुत्र जैसाजी जोधपुर राज्य की सैनिक सेवा में थे, एक बार जब वे रणसी गांव आ रहे थे तब गांव से कुछ दूर चिरढाणी गांव की नटयाली नाडी (छोटा तालाब) पर वे अपने घोड़े को पानी पिलाने के लिए रुके | तभी वहां उन्हें एक भूत मिला और उससे उनकी भिडंत हो गई | भिडंत में जैसाजी ने भूत को पछाड़ दिया और शर्त के अनुसार जैसाजी ने भूत से अपना महल व एक बावड़ी बनवाई जो आज भी भूत बावड़ी के नाम से विख्यात है | इस कुल में इतिहास प्रसिद्ध बल्लूजी चांपावत हुए जिन्होंने आगरा किले से घोड़ा कुदवाया था | आपको बता दें जब नागौर के राजा अमरसिंह राठौड़ की आगरा किले में धोखे से हत्या कर दी थी | उनकी हत्या के बाद उनकी रानियों ने पति के शव के साथ सती होने के लिए बल्लूजी से शव लाने का आग्रह किया | तब बल्लूजी आगरा किले गये व नमन करने के बहाने शव के पास गये व शव अपने घोड़े पर रखकर किले के परकोटे से घोड़ा कूदा दिया | शव अपने साथियों को दिया ताकि वे नागौर ले जा सके व खुद बादशाह की सेना को रोकते हुए वीरगति को प्राप्त हुए | बल्लू जी की पूरी हम अन्य वीडियो में देंगे | रणसी गांव की शमशान भूमि में तालाब किनारे बना स्मारक आज भी बल्लूजी की याद दिलाता है | रियासती में काल में बल्लूजी के अलावा भी इस गांव में एक से बढ़कर एक अनेक योद्धा हुये है, जिनके स्मारक बने है |
इन योद्धाओं में गोपालदासजी राजस्थान के महत्त्वपूर्ण योद्धा हुए हैं | गोपालदासजी मारवाड़ राज्य के प्रधान थे और रणसी गांव के अलावा पाली की जागीर भी उनके पास थी | लेकिन चारण कवियों की अभिव्यक्ति आजादी की रक्षा के लिए उन्होंने प्रधान पद व पाली की जागीर छोड़ दी और चारणों को मारवाड़ राज्य से लेकर मेवाड़ चले गये और महाराणा प्रताप से चारण कवियों को मान सम्मान के साथ आजीविका के लिए गांव दिलवाये | गांव के पूर्व जागीरदार के पुत्र कुंवर सवाईसिंह जी आज गांव के सरपंच है | कुंवर साहब मारवाड़ी घोड़ों की नस्ल सुधार के लिए एक अश्वशाला भी चलाते हैं जहाँ पैदा हुए अनेक घोड़ों ने विभिन्न प्रतियोगिताओं में प्रसिद्धि पाई है | कुंवर साहब के नेतृत्व में जहाँ पुरातात्विक महत्त्व के स्मारकों व मंदिरों का जीर्णोद्धार कार्य हो रहा हैं वहीँ ग्रामीणों के सहयोग से सफलतापूर्वक एक गौशाला का सञ्चालन भी हो रहा है |