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आमेर के ये पांच युवराज इसलिये नहीं बैठ सके राजगद्दी पर

आमेर के इतिहास पर नजर डाली जाये तो आमेर के पांच युवराज राजगद्दी के अधिकारी होते हुए भी गद्दी पर नहीं बैठ सके | इन सभी युवराजों को भिन्न भिन्न कारणों से आमेर की राजगद्दी नसीब नहीं हुई | इनमें सबसे पहले थे – युवराज कुम्भाजी | कुम्भाजी आमेर नरेश चंद्रसेनजी के बड़े पुत्र थे और युवराज के पद पर आसीन थे | वि.सं. 1545 में सुल्तान बहलोल लोदी के सेनापति के हिंदाल ने शेखावतों के राज्य अमरसर पर चढ़ाई की | तब अमरसर की सहायता के लिए आमेर के राजा ने युवराज कुम्भाजी के नेतृत्व में एक सेना भेजी | इस युद्ध में कुम्भाजी अमरसर की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए | इस तरह राजगद्दी पाने से पहले ही कुम्भाजी का निधन हो गया |

राजा मानसिंह जी आमेर ज्येष्ठ पुत्र जगतसिंह भी युवराज थे, जगतसिंह वीर पुरुष थे, बादशाह ने उन्हें बंगाल का सूबेदार भी बनाया था, जहाँ किसी सैन्य अभियान में कार्तिक सुदी 1 वि.सं. 1655 (6 अक्टूबर सन 1599 ई.) को वे वीरगति को प्राप्त हुए | इस तरह युवराज जगतसिंह भी राजगद्दी पर बैठने से पहले इस दुनिया को छोड़ चले | जगतसिंह के निधन के बाद उनके पुत्र महासिंह आमेर के राजा मानसिंहजी के विधिवत उत्तराधिकारी बने और उन्हें युवराज बनाया गया | पर राजा मानसिंहजी के निधन के बाद बादशाह जहाँगीर ने ईर्ष्यावश महासिंह की जगह राजा मानसिंहजी के तीसरे पुत्र भावसिंह को आमेर का राजा बना दिया ताकि आमेर में सत्ता संघर्ष चलता रहे | आमेर में जब बादशाह के इस कदम का विरोध हुआ तब उसने महासिंह को मांडू की जागीर व साढ़े तीन हजार का मनसब देकर संतुष्ट किया |

युवराज सूरजमलजी आमेर के राजा पूरणमलजी के पुत्र थे | राजा पूरणमलजी शिखरगढ़ युद्ध में शेखावतों की सहायतार्थ हुमायूँ के छोटे भाई मिर्जा हिंदाल के साथ युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे |  उस वक्त युवराज सूरजमलजी महज दो वर्ष के थे और अपनी माता राणी राठौड़जी के साथ ननिहाल मेड़ता में थे | राणी राठौड़जी को राजा पूरणमलजी के बड़े भाई भींवजी पर शंका थी, अत: वे बाल युवराज सूरजमलजी को सुरक्षा की दृष्टि से आमेर नहीं लाई | युवराज सूरजमलजी को आमेर ना लाने की वजह से आमेर के सरदारों ने भींवजी को आमेर का राजा बना दिया | इस तरह सूरजमलजी भी युवराज होने के बावजूद आमेर की गद्दी से वंचित रहे |

आमेर के युवराज किशनसिंह का जन्म भाद्रपद बदि 9 वि.सं. 1711 (ई.सं. 1654) में हुआ था | आप मिर्जा राजा जयसिंहजी के पौत्र व राजा रामसिंहजी के पुत्र थे | आप कर्मठ, ओजस्वी, उत्साहवान, शूरवीर और कलाप्रेमी मेधावी राजकुमार थे | पर आसमयिक निधन होने के कारण आप भी आमेर की राजगद्दी से वंचित रहे | इस तरह आमेर के ये पांच युवराज राजगद्दी के अधिकारी होने के बावजूद गद्दी पर नहीं बैठ सके | इन पंचों युवराजों पर छाजूसिंह बड़नगर ने “पांच युवराज” नाम से एक पुस्तक लिखी है जो ऐतिहासिक दृष्टि से पठनीय है |

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