युवराज महासिंह आमेर के कुंवर जगतसिंह के ज्येष्ठ पुत्र और राजा मानसिंहजी के पौत्र थे | आपका जन्म असोज बदि 12, वि.सं. 1642 (ई.सं.1585) को हुआ था | कुंवर जगतसिंह की मृत्यु पिता के सामने ही हुई थी | अत: उनके पुत्र महासिंह को युवराज बनाया गया | वंश परम्परा के अनुसार महा सिंह आमेर के राजा बनते पर, राजा मानसिंह के निधन के बाद बादशाह जहाँगीर ने ईर्ष्यावश महा सिंह की जगह राजा मानसिंह के तीसरे पुत्र भावसिंह को आमेर का राजा बना दिया ताकि आमेर में सत्ता संघर्ष चलता रहे | आमेर में जब बादशाह के इस कदम का विरोध हुआ तब उसने महासिंह को मांडू की जागीर व साढ़े तीन हजार का मनसब देकर संतुष्ट किया |
राजा मानसिंह ने महासिंह को सदैव अपने साथ रख प्रशिक्षण दिया था, जब वे कुंवर जगतसिंह की मृत्यु के बाद बंगाल की व्यवस्था सँभालने की मनोदशा में नहीं थे, तब उन्होंने महज 14 वर्ष के महासिंह को बंगाल जैसे प्रदेश का दायित्व सौंपा और अपने एक अन्य पुत्र प्रतापसिंह को उसका संरक्षक बनाया | बंगाल में राजा मानसिंह की अनुपस्थिति देखकर खूंखार व दुर्दान्त अफगानों ने विद्रोह किया जिसे महासिंह ने दृढ़ता से दबा कर अपनी वीरता और सैन्य सञ्चालन का परिचय दिया | उस्मान खां पठान ने भी कम उम्र का सेनापति देख विद्रोह किया, महासिंह ने उन्हें दृढ़ता से कुचला पर पूर्ण रूप से दबा नहीं सके, तब राजा मानसिंह स्वयं बंगाल पहुंचे और विद्रोह को कुचला |
ई.सं. 1601 में अफगान सरदार जलाल खां ने विद्रोह किया, वह बंगाल के मालदा और अकरा जनपदों में लूटमार मचाता था, जिसे कुचलने के लिए महा सिंह को भेजा गया | महासिंह ने प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद जलाल खां को पराजित किया | इस तरह महासिंह ने राजा मानसिंह के रहते और उनके निधन के बाद बंगाल की सूबेदारी बड़ी कुशलतापूर्वक निभाई | उन्होंने कई विद्रोहियों पर काबू पाया | हालाँकि जहाँगीर ने महासिंह को आमेर का राजा तो नहीं बनने दिया, फिर भी जहाँगीर के दरबार में महासिंह की स्थिति बहुत महत्त्वपूर्ण और सम्मानजनक थी |
जहाँगीर ने उन्हें गढ़ बांधू (रीवा) का प्रशासक बनाया, चार हजार जात व तीन हजार सवार का मनसबदार बनाया, गढ़ा की भी जागीर दी| सन 1614 ई. में नववर्ष के दिन बादशाह ने महा सिंह को झंडा प्रदान कर उनका सम्मान किया | जुलाई 1615 में महासिंह को बादशाह जहाँगीर ने राजा का ख़िताब, नक्कारा और झंडा प्रदान किया |
इनकी प्रशासनिक क्षमता व दक्षता को देखते हुए बादशाह ने इन्हें ज्यादातर दक्षिण में ही नियुक्त रखा | दक्षिण में ही बरार प्रान्त के बालापुर में इनका ज्येष्ठ सुदी 5, वि.सं. 1674 (ई.सं.1617) को निधन हुआ | इनके ग्यारह रानियाँ थी, जिनमें से सात इनके साथ सती हुई | चार बालापुर में व तीन रानियाँ दौसा में सती हुई थी | चूँकि आमेर के राजा भावसिंह निसंतान थे अत: उनके निधन के बाद महासिंह के पुत्र जयसिंह सन 1622 ई. में आमेर के राजा बने जो मिर्जा राजा जयसिंह के नाम से इतिहास में प्रसिद्ध है |
सन्दर्भ पुस्तक : पांच युवराज, लेखक – छाजूसिंह बड़नगर