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बड़ी बेरी ठिकाने का इतिहास | रघुनाथसिंघोत मेड़तीयों का ठिकाना | Badi Beri Fort

राजस्थान के मारोठ में गौड़ राजपूतों का शासन था, जिसे कालांतर में मेड़ता के शासक और इतिहास में चित्तौड़ का शेर के नाम से प्रसिद्ध वीरवर जयमल मेड़तिया के वंशज रघुनाथसिंह जी ने गौड़ों से छीन लिया | गौड़ राजपूतों का शासन होने के कारण इस क्षेत्र को गौड़ावाटी प्रदेश के नाम से जाना जाता था | मारोठ के आस-पास गौड़ राजपूतों के अनेक छोटे बड़े ठिकाने थे, जिन पर धीरे धीरे मेड़तिया राठौड़ों ने कब्ज़ा कर लिया |

राजा रघुनाथसिंह जी के वंशज रघुनाथसिंघोत मेड़तिया कहलाये, यानी राठौड़ों की मेड़तिया शाखा में रघुनाथसिंघोत मेड़तिया नाम से एक अलग उपशाखा का प्रदुर्भाव हुआ | रघुनाथसिंह जी के बाद उनके पुत्रों ने पांच अलग अलग ठिकाने कायम किये, जिन्हें “पंच महल” के नाम से जाना जाता है | इन महलों के नाम थे- मिंढा, लूणवा, पांचोता, पांचवा और जीलिया |

लूणवा ठिकाने के एक वंशज सम्पतसिंहजी को नागौर जिले में मोलासर के पास 12 गांवों की जागीर मिली | ये गांव थे बड़ी बेरी, छोटी बेरी, पायली, मोड्यावट, खाखोली, घलवाणी, गूगोर, हरियाजून, नगवाड़ा, कुणी और पिपराली | सम्पतसिंहजी ने बड़ी बेरी में गढ़ी का निर्माण करवाकर अपना ठिकाना कायम किया और अपनी जागीर की देखरेख की |

सम्पतसिंहजी के बाद क्रमशः शार्दूलसिंहजी, शेरसिंहजी, उदयभानसिंहजी, सल्हेदीसिंहजी, विजयसिंहजी, ओनारसिंहजी, हरनाथसिंहजी जागीरदार बने | हरनाथसिंहजी निसंतान थे अत: नगवाड़ा गांव से बलदेवसिंहजी गोद आये | आपको बता दें रियासती काल में किसी भी शासक के संतान नहीं होने पर सबसे नजदीकी रक्त सम्बन्धी को गोद लेने की परम्परा थी |

बलदेवसिंहजी के बाद उनके पुत्र अमरसिंहजी बड़ी बेरी ठिकाने की गद्दी पर बैठे और उन्हीं के कार्यकाल में देश आजाद हुआ और जागीरदारी व्यवस्था समाप्त हो गई | इस तरह ठाकुर अमरसिंहजी इस ठिकाने के आखिरी जागीरदार रहे, उनका निधन अक्तूबर 1980 में हुआ |

वर्तमान में गढ़ में ठाकुर अमरसिंहजी के पुत्र ठाकुर जसवंतसिंहजी अपने परिवार के साथ निवास करते हैं, ठाकुर जसवंतसिंहजी के पुत्र नाम कुंवर अजीतसिंह है |

ठाकुर जसवंतसिंहजी के अनुसार इस ठिकाने के अधीन तीन गढ़ है जो बड़ी बेरी, लूणवा और कुणी में बने हैं |

इस जागीर के जागीरदारों ने भी समय समय पर मारवाड़ रियासत को महत्त्वपूर्ण सेवाएँ दी, लेकिन ठाकुर बलदेवसिंहजी यहाँ के लोकप्रिय ठाकुर हुये | बेरी के जीतूजी ढोली ने हमें बताया कि ठाकुर बलदेवसिंहजी धार्मिक प्रवृति के व्यक्ति थे और हनुमान जी का ईष्ट रखते थे, साथ ही वे लीवर रोगी को झाड़ा देकर ठीक कर दिया करते थे | जीतूजी ढोली ने बताया कि मंगलवार व शनिवार को लीवर व पेट रोगियों का गढ़ में जमघट लग जाया करता था, ठाकुर साहब चार बजे तक सभी रोगियों का इंतजार करते, चार बजे लाइन से सभी रोगियों को जमीन पर उल्टा लेटाकर सुला देते और फिर मन्त्र बोलते हुए सभी के ऊपर तलवार घूमाते, रोगी अपने सामने नारियल व एक मिटटी का ढेला रखकर लेटते थे, मन्त्र बोलने के बाद जिस रोगी का ढेला मिटटी हो जाता समझो वो पूर्ण निरोग हो गया |

ठाकुर बलदेवसिंहजी के निधन के बाद भी स्थानीय जनता उन्हें लोकदेवता के रूप में पूजती है | ठाकुर साहब के स्मारक के पास खेत में अपनी ढाणी में रहने वाले दानारामजी जाट ने हमें बताया कि आज भी मंगलवार, शनिवार, अष्टमी आदि कई दिनों पर ठाकुर साहब के स्मारक पर रोगियों की भीड़ जुटती है, रोगी उनके स्मारक पर फेरी देने मात्र से ही निरोग हो जाते हैं |

इस तरह ठाकुर बलदेवसिंहजी आज भी लोक देवता के रूप में पूजित हैं और अपने निधन के वर्षों बाद भी स्थानीय जनता को रोगमुक्त कर रहे हैं |

ठाकुर बलदेवसिंहजी के बार में दानारामजी जाट ने अपने पूर्वजों से सुनी बातों के आधार पर हमें बताया कि वे धार्मिक व्यक्ति जरुर थे, पर शासन के दृष्टि से भी बड़े सजग थे, यदि उनकी जागीर के गांव कोई चोरी हो जाती तो वे खुद जांच करते और चोर को पकड़ कर चोरी का माल बरामद करने के बाद भी दम लेते और चोर को कठोर सजा देते | इसलिए चोर उनकी जागीर में चोरी करने से भी डरते थे |


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