वैस राजवंश की शाखाएँ, राज्य और स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
राजपूत शाखाओं का इतिहास" पुस्तक में लेखक देवीसिंह मंडावा ने वैस राजवंश का स्वतंत्रता संग्राम में योगदान, उनके राज्य व वंश की विभिन्न शाखाओं का वर्णन इस प्रकार किया है - सन 1857 में जब भारत में स्वतंत्रता संग्राम छिड़ा तो वैसवाड़ा इससे पीछे नहीं माधवसिंह जिन्हें वहाँ के राणा शिवप्रसादसिंह ने गोद लिया था, अंग्रेजों के विरुद्ध मैदान में उतर आए। उनके मैदान में उतरते ही सारा वैसवाड़ा अंग्रेजों के विरुद्ध उमड़ पड़ा। राना बेनीमाधवसिंह वृद्ध होकर भी अंग्रेजों के खिलाफ गुरीला पद्धति से युद्ध लड़ते थे, जिससे अंग्रेज तंग आ गए थे। चूंकि अंग्रेजों के पास बड़ी सेना थी, कैम्पवेल के हमले को सफल होते देख बेनीमाधवसिंह गायब हो गए, जिन्हें अंग्रेज काफी कोशिशों के बाद भी पकड़ नहीं सके। इस प्रकार स्वतंत्रता संग्राम में बड़ी संख्या में वैसों ने आजादी के लिए बलिदान दिया। डोडिया खेड़ा के राव रायबख्शसिंह ने भी सन् 1857 के संग्राम में अंग्रेजों का मुकाबला किया।
वैस वंश के राज्य: वैस वंश के निम्न राज्य थे—मुरारमऊ, खजूरगाँव, कुर्सी सुदौली, कोडिहर सतांव, पाहु, पिलखां, नरेन्द्र, चरहुर, कसो, देवगांव, गोरा, कसहरी, कटधर, गौंडा, सीमड़ी, उरहर, हसनपुर, थानगांव, कान्हमऊ तथा वशीढ़ कुवा।
इस वंश के क्षत्रिय फर्रुखाबाद, मैनपुरी, बदाड़, कानपुर, फतहपुर, बांदा हमीरपुर, इलाहाबाद, बनारस, मिर्जापुर, जौनपुर, गाजीपुर, बलिया, गोरखपुर, बस्ती, आजमगढ़, लखनऊ, उन्नाव, रायबरेली, सीतापुर, हरदोई, फैजाबाद, मोण्डा, बहराइच, प्रतापगढ़ तथा बाराबंकी में हैं।
वैसों की शाखाएँ: तिलोकचंदी वैस, रावघराना, वैसले कोटवाहर वैस, भाले सुलतान, राजाघराना, सेनवंशी, नैहस्था, गुदरहा, भधौर, कोट भीतर वैस, कठवैस, तिलसरी, चकवैस, नावग, चावंडा, बच, परसरिया, बिझौनिया चटेकरिया, गर्गवंशी, बढ़ेलिया, रावत, मगोहर कठेरिया, छुटभैय्यां इत्यादि।