Traditional Water Management of Rajasthan : जोधपुर जिले का आसोप क़स्बा बहुत प्राचीन है | मारवाड़ रियासत के प्रमुख ठिकाने रहे आसोप पर राठौड़ों की कुम्पावत शाखा का अधिकार था | कुम्पावत राठौड़ों से पहले भी यहाँ किसी क्षत्रिय राजवंश का राज था | आसोप के ग्रामीणों व शासकों ने पानी के महत्त्व का किस दृष्टि आंकलन किया, इसका प्रमाण कस्बे के चारों ओर खुदे तालाब है | इन तालाबों से सदियों तक ग्रामीण व पशु-पक्षी अपनी प्यास बुझाते आ रहे हैं | अपने भाग्य में लिखी और बादलों द्वारा लायी गई बूंदों को अपने तालाबों में सहेजकर जिस तरह आसोपवासी सदियों से स्वच्छ पेयजल के रूप में प्रयोग कर रहे हैं वह प्रेरणा स्त्रोत है |
वर्तमान में स्वचालित पम्प सेटों वाले ट्यूबवेल होने के बावजूद आज भी आसोपवासी पेयजल के लिए इन तालाबों से पानी ले जाते देखे जा सकते हैं | आसोप में नौसर, नानोलाई, चान्चोलाई, महादेव व माता का थान नाम से पांच अतिप्राचीन तालाब मौजूद है | इनमें ऐतिहासिक नौसर तालाब की पाळ पर यहाँ के शासकों व योद्धाओं की कलात्मक छतरियां बनी है, जो तालाब के सौन्दर्य को चार चाँद लगाती है |
आसोप के नौसर तालाब के बारे में कहा जाता है कि कभी कितना भी सुखा क्यों ना पड़ा हो इस पानी कभी नहीं सुखा | सूखे के विकट समय में दूर दूर के ग्रामीण इस तालाब से पानी ले जाकर अपनी प्यास बुझाते थे |
प्राचीनकाल में ही नहीं, वर्तमान में भी ग्रामीण इन तालाबों के जल का प्रयोग कर रहे हैं और इनकी सुचारू व्यवस्था करते हैं | इन तालाबों की ऐतिहासिकता, महत्त्व और रखरखाव की व्यबस्था के बारे में आसोप निवासी रामकिशोर सेंगवा ने बताया कि आज ग्रामीण इन तालाबों के रखरखाव का जिम्मा निभाते हैं, इसके लिए संस्था बना रखी है जिसके माध्यम से इनका प्रबंधन किया जाता है |
तो ये थी राजस्थान की पारंपरिक जल व्यवस्था की जानकारी | यदि आज भी हम गांवों व शहरों में बने इन पारम्परिक जलस्त्रोतों की सही देखभाल करें तो हम कुंवों के फ्लोराइड युक्त पानी व नहरों के प्रदूषित जल की वजह फ़ैल रहे कैंसर जैसे घातक रोग से बच सकते हैं |