जालोर, किराडू और दांता के परमार वंश का इतिहास
जालोर के परमार- राजस्थान के गुजरात से सटे जिले जालोर में ग्यारहवीं-बारहवीं सदी में परमारों का राज्य था। परमारों ने ही जालोर के प्रसिद्ध किलों का निर्माण कराया था। जालोर के परमार संभवतः आबू के परमारों की ही शाखा थे। एक शिलालेख के अनुसार जालोर में वंश वाक्यतिराज से प्रारम्भ हुआ है जिसका काल 950 ई. के करीब था। उसके बाद पुत्र चन्दन व क्रमशः देवराज, अपराजित विज्जल, धारावर्ष व बीसल हुए।
किराडू के परमार- किराडू के परमार वंशीय आज भी यहां राजस्थान के बाडमेर संभाग में स्थित हैं। परमारों का वहाँ ग्यारहवीं तथा बारहवीं सदी से राज्य था। ई. 1080 के करीब सोछराज जो कृष्णराज द्वितीय का पुत्र था ने यहाँ अपना राज्य स्थापित किया। यह दानी था।
यह गुजरात के शासक सिन्धुराज जयसिंह का सामन्त था। इसने अनेकों राज्यों पर विजय प्राप्त की। इसका पुत्र सोमेश्वर भी एक अच्छा योद्धा था। जिसने वि. 1218 में राजा जज्जक को परास्त कर जैसलमेर के तणोट और जोधपुर के नोसर किलों पर अधिकार प्राप्त किया। बाद में गुजरात के राजा कुमार पाल की आधीनता स्वीकारने पर दोनों किले जज्जक को वापस कर दिए।
दाँता के परमार- ये अपने को मालवा के परमार राजा उदयादित्य के पुत्र जगदेव के वंशज मानते हैं। उस वंश में करीब 37 शासक हुए जिनमें पिछले राजा भवानीसिंह योग्य शासक थे।
जगनेर बिजौलियाँ के परमार-मालवा पर मुस्लिम अधिकार के बाद परमार चारों ओर फैल गए। इनकी ही एक शाखा जगनेर आगरा के पास चली गई। उनके ही वंशज अशोक मेवाड़ आए। उस समय मेवाड़ के महाराणा सांगा प्रथम थे जिन्होंने इनको बिजौलियाँ की जागीर दी जो मेवाड़ के सोलह उमरावों में से थे। बिजौलियाँ शाखा में 18 उत्तराधिकारी हुए।