वंशावली लेखक : राव इन्द्रसिंह जी |
बड़वाजी, रावजी या पुरोहितों द्वारा निर्मित वंशावलियाँ या बहियाँ प्रामाणिक दस्तावेजी न्यायिक साक्ष्य के रूप में मान्य है। इसमें पारिवारिक सम्बन्धों के विषय में कागज इत्यादि पर वर्णन किया जाता है। इसका उद्देश्य उनके सदैव रिकार्ड के रूप में रखने का होता है। वर्णन में अक्षरों के साथ ही चिह्नों का भी प्रयोग करते हैं। मौखिक साक्ष्य से लिखित साक्ष्य अधिक प्रभाव पूर्ण होता है। निश्चित रूप से बहियाँ या वंशावलियाँ, एक न्यायिक दस्तावेज है। भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 के अनुसार वंशावलियों बहियों इत्यादि को सुसंगत न्यायिक तथ्य के रूप में स्वीकार किया गया है।
जगदीश प्रसाद बनाम सरवन कुमार AIR 2003 P & H मामले में न्यायालय ने पण्डों
की बहियों में की गई प्रविष्टियों को साक्ष्य के रूप में ग्राहय माना। ऐसे कई
मामले हैं जिसमें वंशावलियों व बहियों को साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया है।
वंशावली लेखको को लोक इतिहासकार भी कह सकते हैं। पुरातन एवं मध्यकालीन भारतीय इतिहास लेखन में वंशावलियाँ सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्रोत रही हैं। हमारे पुरातन ग्रन्थ पुराणों में जो इतिहास उपलब्ध है उसमें वंशावलियों का महत्वपूर्ण आधार रहा है। कई ऐतिहासिक घटनाओं के प्रमाण वंशावलियों से मिलते हैं।
वंशावलियों में प्रत्येक जाति व प्रत्येक व्यक्ति के इतिहास का लेखन हुआ है। उनके वंशानुक्रम की जानकारी हमें वंशावलियों से मिलती है। वंश लेखकों ने जातीय सामाजिक इतिहास की भी जानकारी दी है। समाज जिन महापुरूषों को अपना आदर्श मानता है, उनकी जानकारी भी हमें वंशावलियों से प्राप्त होती है। वंशावली लेखन परम्परा की शुरूआत वैदिक ऋषियों द्वारा समाज को सुसंगठित एवं सुव्यवस्थित करने की दृष्टि से की गई थी, जो हजारों वर्षों से आज भी अनवरत् जारी है। वंशावली परम्परा के हस्तलिखित ग्रन्थों से अनेक ऐतिहासिक पुरुषों का परिचय प्राप्त होता है।
समाज के आर्थिक जीवन के विकास, लोगों के व्यवसाय आदि का उल्लेख भी वंश लेखकों द्वारा किया गया है। वंशावली लेखक एक निश्चित समय तक व्यक्ति के आवास पर ही निवास करके इसका लेखन करता था। इसलिए उसमें यथार्थता दिखाई पड़ती है।
प्रत्येक व्यक्ति को अपनी परम्परा, संस्कृति, मूल निवास, विस्तार, वंश, कुलधर्म, कुलाचार, गोत्र व पूर्वजों के नाम प्राप्त करने का सर्वाधिक विश्वनीय स्रोत वंशावलियाँ ही हैं।
वंशावलियों द्वारा धर्मान्तरित हिन्दुओं को अपनी जड़ों का परिचय देकर आपसी विद्वेष को कम किया जा सकता है। इससे धार्मिक उन्माद और अलगाववाद को कम करके देश में साम्प्रदायिक सहयोग और सद्भाव की भावना को बढ़ावा मिल सकता है। पुराणों में भी जो पाँच लक्षण (विषय) बताए गए हैं. उनमें वंश रचना व वंशानुचरित प्रमुख लक्षण के रूप में अंकित है।
सर्गश्च प्रतिसर्गश्च वंशो मनवन्तराणि च ।
वंशानुचरितम् चैव पुराणं पंच लक्षणाम् ।।
अर्थात् सृष्टि का सृजन, प्रलय का आगमन, वंशों की रचना, काल अवधि गणना एवं वंशचरित की
चर्चा करना। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि वंशावलियों
के माध्यम से हमें इतिहास के महत्त्वपूर्ण तथ्यों की जानकारी मिलती है | आज भी
वंशावली लेखक घर घर जाकर इनका वाचन करते हैं|
इसलिए हमें इन वंशावली लेखकों का पूरा सम्मान करना चाहिए और उन्हें
उचित मेहनताना देना चाहिए ताकि आर्थिक रूप से वे मजबूत रहे और वंशावली लेखन ना
छोड़ें | ऐसे बहुत से वंशावली लेखक है जिन्होंने आर्थिक कारणों से यह कार्य छोड़
अन्य रोजगार अपना लिए और उनके खानदान ने जिन गांवों का रिकार्ड रखा आज वे गांव
वाले उस रिकार्ड के लिए तरसते हैं पर उन्हें मिलता नहीं, अत: आपके बड़वाजी या रावजी भी आर्थिक कारणों से ये कार्य ना छोड़े
इसके लिए आप उनकी आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति का भी ध्यान रखें |