ग्रंथों में हांडी भडंग का विवरण
जोधपर के नाथ मतावलंबी महाराजा मानसिंह (सन् 1803 से 18481 परे भारतवर्ष के तत्कालीन नाथ सम्प्रदाय के
आसनों, पंथों और उनले (मठाधीशों) का राजकीय स्तर पर
सर्वेक्षण कराया था जो मेहरानगढ़ 'पुस्तक प्रकाश' में सुरक्षित है। इस बही के अनुसार राजस्थान में कुल 460 आसन थे। इनमें एक
'भडंग पंथ" भी है और उसके 12
आसन थे। भडंग पंथ के संदर्भ में केवल इतना ही उल्लेख किया गया है 'सम्भवत: यह पंख सम्प्रदाय' से संबंधित हांडी भरंग से
अभिन्न रहा हो। इसके अतिरिक्त और कोई सूचना उपलब्ध नहीं है।' इसी प्रकार 'चूरू मंडल के शोधपूर्ण इतिहास' (लेखक श्री गोविन्द अग्रवाल) के पृ.सं. 391 पर उल्लेख
है कि भाडंग और सिद्धमुख भी प्राचीन स्थान हैं जो सिद्ध भडंग और सिद्धनाथ से
संबंधित लगते हैं। इसके अतिरिक्त दादूपंथी स्वामी नारायणदास, पुष्कर ने भी अपनी एक पुस्तक में हांडी भडंग का उल्लेख किया है जो
अपर्याप्त है। श्री सौभाग्य सिंह शेखावत ने डॉ. कल्याण सिंह शेखावत (जयनारायण
व्यास विश्व विद्यालय) के शोध प्रबंध 'मीरां बाई' की 'प्रस्तावना में हांडी भडंग और आमेर के कुंवर मानसिंह
की भेंट का जिक्र करते एक छप्पय दिया है
छप्पय
गढ़ बावन बलख, गाँव ऊजीण सरीखौ।
हय गय अंत न पार, साज सुख इंद्रपुरी
कौ।
मेघ घटा जिम महल, हीरां रतन जड़ी को।
सज पोहप सजी सखी, लख सोलह सुन्दरी का।
सो नर पतसाह 'मसुंदर' भणै,
हरि हेतन त्यागन कियौ।
मो दाळद कहां मेटै राजा,
(ओ) दाळद मुंहधै मोल लियौ॥
कबीर ने भी निम्निलिखित पद में सद्गुरु के मिलने
के बाद बलख बुखारा की बादशाहत छोड़ कर चले जाने का उल्लेख किया है। इसका आधार वही
उक्त जन-श्रुति ही है।
जाके लागी है सो जांणै, गाफिल क्या जाणै रे भाई। सतगुरु
मिलिया पटा लिखाया, जद जागीरी पाई।
सतगरु म्हारै इसी बताई. नींद किसे गण आई॥
मारग में एक घायल घूमै, घाव नहीं रे भाई।
प्रेम भाल अंतर में लागी, अब
सिरक्यो नहीं जाई॥2॥
गोपीचंद भरथरी लागी, लागी मीरां बाई।
बलख बुखारे ऐसी लागी, छांड़ चल्यौ
पतसाई॥3॥
गहरी नदियां नाव चलत है, खेवट सतगुर राई।
कहै 'कबीर' सुणो
भाई साधो, सबदां सुरत मिलाई ।।4।।
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने हांड़ी भारंग' पंथ का बहुत सूक्ष्म विवरण देते हुए लिखा है कि गोरखनाथ के एक शिष्य
शक्करनाथ द्वारा यह पंथ चलाया गया था और उनका मुख्य स्थान पूने में है। अन्य
प्रसंग में उल्लेख किया है कि 'हाडी भरंग' पंख या पंक सम्प्रदाय से सम्बन्धित है। डॉ. हीरालाल माहेश्वरी का मत है कि
हांडी भडंग क्रियानुरूप नाम है। गुरु प्रदत्त नाम मृतक नाथ बताया जाता है।
पूर्वाश्रम में बलख बुखारा के बादशाह होने की जन-श्रुति को स्वीकार करते हुए
उल्लेख किया है कि उसने गोरख ज्ञान-प्राप्ति हेतु तप करते हुए देह त्याग दी तो
गुरु गोरख ने उसे पुनर्जीवित कर उसका नाम मृतक नाथ रखा और मनोवांछित फलप्रद हांडी
दी। हांडी भडंग राजस्थान में कई वर्षों तक घूमते रहे।