महात्मा हांडी भडंग नाथ और हर्षनाथ पर्वत |
महात्मा हांडी भडंग नाथ का शेखावाटी के हर्षनाथ पर्वत से गहरा नाता रहा है | महात्मा हांडी भडंग नाथ बलख बुखारा के बादशाह थे और वैराग्य उत्पन्न होने के बाद उन्होंने सन्यास ले लिया और नाथ सम्प्रदाय में दीक्षित हुए | हांडीभडंग के संबंध में राजस्थानी-शोध-संस्थान, चौपासनी (जोधपुर ) से सौभाग्यसिंह शेखावत ने चूरू मंडल का इतिहास लेखक को अपने पत्र दिनांक ३-८-६७ तथा १-६-६७ के द्वारा सूचित किया कि हांडीभड्ग बलखबुखारा का सुल्तान था। बलख का राज्य त्याग कर वह योगसाधना के लिए भारत आया था । उस का जन्म नाम अब्राहम या इब्राहिम था । यहां नाथ-सम्प्रदाय में उसने दीक्षा ली, तब से वह 'हांडीभडंग' के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
हांडी-भडंग निःसन्देह सं. १६०० के पास-पास ही हुआ है और चूरू ठाकुर मालदेव से उसके सम्पर्क को जन-श्रुति में सत्यता हो सकती है । वह अधिकांशतः नागौर, शेखावाटी, डीडवाना, परबतसर और चूरू क्षेत्र में ही रहा था। मुसलमान होते हुए भी उसके शिष्य हिन्दू थे, कारण वह मुस्लिम धर्म की मान्यताओं को त्याग कर नाथ सम्प्रदाय में दीक्षित हुअा था। सन्तवाणी में उसका नामोल्लेख अनेक स्थलों एवं प्रसंगों में जहां तहां मिलता है
गोपीचन्द
भरथरी लागी,
लागी मीरां बाई ।।
बलख-बखारै ऐसी लागी, छाड़ चल्यो पतसाई ।।
मरु-भारती,
वर्ष १६ अङ्क ४, में भी एक गीत हांडीभडंग से संबंधित प्रकाशित
हुआ है
सीकर से करीब 12 मील दक्षिण में हर्ष
का पर्वत है। यह एक प्रसिद्ध तपोभूमि है। इस पहाड़ की एक 'खोळ'
(नाला) का नाम 'हांडी खोळ' विख्यात है। इसी पर्वत के दक्षिण-पश्चिमी भाग पर एक गुफा बतायी जाती है।
समीपवर्ती गाँवों के बुजुर्ग लोग कहते हैं कि वे पुरखों से सुनते आ रहे हैं कि
यहाँ हांडी भडंगजी अथवा हांडी भडंग नाथजी ने तपस्या की थी और उन्हीं के नाम पर यह 'खोळ' है। इस क्षेत्र के आस-पास के संत महात्माओं में
सौ साल पूर्व तक यह मान्यता थी कि महाकुम्भ के अवसर पर हांडी भडंग गंगा स्नान करने
आते हैं। उनकी पहचान हरा वस्त्र है।
इन जन-श्रुतियों के आधार पर यही
निष्कर्ष निकलता है कि महात्मा हांडी भडंग भी भर्तृहरि, गोपीचंद की तरह अमर हैं और वे औलिया सूफी दरवेशो की उसी श्रृंखला में हैं
जिसमें शेखावतों के वंश-प्रवर्तक राव शेखा के जन्म वरदान देने वाले शेख बुरहान और
गरीब-नवाज ख्वाजा मोइनुदान अजमेर हैं जिन्हें हिन्दू और मुसलमान समान भाव से पूजते
।