मसूद ने सुरक्षा की दृष्टि से अपने सेनापति सालार सैफुद्दीन और मियां रजब के एक बड़ी सेना को आगे रवाना किया और स्वयं मसूद संतरास में रुक गया। इसी जीन सालार साह भी एक बड़ी सेना सहित मसूद से आकर मिला। मसूद ने सुलतान एरालातीन और मीर बख्तियार को दक्षिणी इलाकों को लूटने के लिए भेजा।(तारीख मसूदी)।
दूसरी तरफ राजपूत राजाओं ने मुसलमान हमलावरों से देश और धर्म पर आ रही विपदा से मुकाबला करने के लिए कमर कस ली। अनेक राजा अपनी सेना लेकर एकत्र हए। बिहार के राय हरदेव का साथ देने हेतु कदा, मलिकपुर आदि के राय भी संयुक्त रूप से मुकाबले के लिए सम्मिलित हए। इसी अवसर पर भोज परमार की भी एक बड़ी भारी सेना आ गई, इस प्रकार राजपूत मुस्लिम सेना से मुकाबला करने में समर्थ हो गए थे।
मसूद ने सुल्तानपुर पर आक्रमण करने के लिए सेना भेजी। सुल्तानपुर में राजपूत सेना ने सुहेलदेव वैस और राय हरदेव के नेतृत्व में मुस्लिम सेना को भारी क्षति पहुँचाई। मसूद गाजी की सेना के पाँच सेनापति इस युद्ध में मारे गए तथा उसे भारी पराजय का मुँह देखना पड़ा। मियां रजब ने बहराइच पहुँच कर सूरजकुण्ड के पास दस बीघा जमीन पर से पेड़ (जंगल) कटवा कर मैदान साफ कर दिया था।
बहराइच से सालार सैफुद्दीन ने मसूद को संदेश भेजा कि यहाँ शत्रु काफी शक्तिशाली हैं, इसलिए संकट गहरा रहा है। इस कारण तुरन्त सहायता भेजी जाए। संदेश पहुँचते ही मसूद स्वयं अपनी बड़ी भारी सेना लेकर बहराइच पहुँचा। (Eliat Dowson & Vo.11 P. 538)
मुसलमानी सेना का पड़ाव कसाला नदी के किनारे पर था। मसूद ने मलिक हैदर को आदेश देकर सभी अमीर सेनापतियों को हिन्दुओं पर आक्रमण करने के विचार से एकत्र किया। विचार-विमर्श के बाद मसूद गाजी ने निश्चय किया कि राजपूत सेना का आक्रमण हो, उससे पहले हमको उन पर धावा बोल देना चाहिए।
सुल्तानपुर की विजय से राजपूत संयुक्त सेना का मनोबल बढ़ गया था। सेनापतियों एवं अनुभवी युद्ध-विशेषज्ञों ने मुस्लिम सेना के द्वारा किए जाने वाले आक्रमण की दिशा में अनेक प्रकार के अवरोध पहले से लगा दिए थे। छोटी-छोटी गेंदों में लोहे के छोटे-छोटे भाले लगाकर उस क्षेत्र में फैला दी ताकि शत्रु के घोड़ों के पैरों में भाले चुभे
और वे लंगड़े होकर गिर पड़ें। राजपूत सेना आक्रमण का सामना करने को तैयार खड़ी थी।
मसूद सुबह अपने घोड़े पर चढ़ा और अपनी सेना को युद्ध-व्यूह में आगे बढ़ाया। घमासान युद्ध शुरू हो गया। हिन्दुओं की योजना के अनुसार शत्रुओं का भारी संख्या में संहार हुआ। यह देख कर मसूद ने कुछ सेना हरावल के आक्रमण के मुकाबले हेतु छोड़ी और शेष सेना के साथ राजपूत सेना के बाजू पर धावा बोल दिया। दिन भर के युद्ध में भारी रक्तपात हुआ और सायंकाल युद्ध बन्द हो गया। मसूद ने मृत सैनिकों की संख्या की गिनती करने का आदेश दिया। गिनती करने से पता चला कि मसूद की सेना के एक-तिहाई सैनिक मारे जा चुके थे। जबकि राजपूत सेना की शक्ति अब भी मजबूत बनी हुई थी।