Vais Rajput Rajvansh History भारत पर मसूदगाजी का आक्रमण और बहराइच का युद्ध
इतिहास का अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि गजनी के शासकों की गिद्ध दृष्टि भारत के धन को लूट कर ले जाने पर लगी रही। वे भारत के भव्य मन्दिरों की सोनेचाँदी की मूर्तियों, मन्दिरों के शिखरों पर लगे सोने-चाँदी के कलशों को तोडकर अपार (अतुल) सोना, चाँदी, माणिक व मोती ले गए तथा भव्य कलात्मक मन्दिरों को खण्डहर बना गए।
महमूद गजनवी जब भी भारत को लूटने आता था, तब अपने दोनों पुत्रों मोहम्मद तथा मसूद को अपनी राजधानी गजनी की रक्षा का भार सौंपकर आता था। उसे भय था कि पीछे से कोई उस के राज्य पर अधिकार न जमा ले।
महमूद गजनवी की बहिन का विवाह सैयद सालारसाहू के साथ हुआ था, जिसका पुत्र मसूद था। भारत को लूटने हेतु आते समय महमूद अपने भानजे मसूद को सर्वदा अपने साथ रखता था। महमूद भारत से भारी मात्रा में धन लूट कर ले जाता था, उसे मसूद सदैव देखता रहा था। 30 अप्रैल, सन् 1030 ई. में महमूद गजनवी की गजनी में 63 वर्ष की आयु में मृत्यु हो जाने के बाद उसके भानजे मसूद ने भी भारत को लूटने की योजना बनाई। वह भारत आने के सम्पूर्ण रास्तों से परिचित था, भारत के वैभव एवं धन की भी उसे जानकारी थी। मसूद ने भारत को लूटने के विचार से एक बहुत बड़ी सेना एका की। वह सन् 1031 ई. में अपनी सेना के साथ भारत आया। वह भारतीय प्रदेशों को लूटता-खसोटता हुआ दिल्ली के निकट पहुँचा। दिल्ली के तत्कालीन तंवर वंशीय शासक महिपाल ने मसूद की तूफानी वेग से बढ़ती हुई सेना को रोकने के लिए एक विशाल सेना एकत्र की। तंवर शासक की सेना ने प्राण-पण से मसूद की सेना को हराने के लिए युद्ध किया, परन्तु उसी समय गजनी से दूसरी सेना आ जाने के कारण तंवर शासक महिपाल को पराजित होना पड़ा। इस युद्ध में दिल्ली शासक का पुत्र वीरगति को प्राप्त हुआ। तंवर इतिहास के लेखक द्विवेदी ने उस समय दिल्ली पर तंवर शासक महिपाल को नही मानकर कुमारपाल को माना है।
मुसलमानों ने दिल्ली को जी भर कर लूटा। दिल्ली को लूटने के बाद मसूद गाजी की सेना वर्तमान उत्तर प्रदेश में आगे बढ़ी। पड़िहार साम्राज्य का यह पराभव काल था। मसूद ने कन्नौज पर आक्रमण किया तथा वहाँ के शासक यशपाल को आसानी से हरा कर कीज को खूब लूटा। कन्नौज से आगे बढ़कर उसने बाराबंकी तथा अयोध्या आदि को लूटा तथा उससे आगे बढ़कर दलमड़ पर अधिकार कर लिया और मलिक अब्दुल्ला को वही छोड़ दिया। इसके बाद वह अपनी सेना के साथ पूर्व की ओर ऊपर पहाड़ों के नीचे बहने लगा, क्योंकि उसे भय था कि अगर नीचे गया, तो मालवा नरेश भोज परमार से मुकाबला न हो जाए। भोज की सेना से भयभीत होकर उसका मामा महमूद गजनवी भी सोमनाथ के मन्दिर को लूटने के बाद रास्ता बदल कर कच्छ के रन में से होकर भागा था, इस बात को मसूद गाजी अच्छी तरह जानता था।
सैयद मसूद गाजी जिस समय मेरठ से आगे बढ़ा, उस समय बस्ती और बहराइच का शासक सुहेलदेव वैस था। (सुहेलदेव राजा त्रिलोकचन्द वैस के बड़े पुत्र बिडारदेव का नाज था) इसकी सेना तथा भाई बन्धु भालों से लड़ने में बड़े प्रवीण थे। ये लम्बे भाले गते थे। राजा सुहेलदेव का बस्ती के अलावा बहराइच में भी एक किला था, वह स्थान अब शारदा टीला कहलाता है। बहराइच में भगवान सूर्यदेव का एक भव्य मन्दिर था, जो महभिर में प्रसिद्ध था। इस मन्दिर में भगवान सूर्य की विशाल पत्थर की मूर्ति थी और निरके पास एक बड़ा तालाब था।
क्रमश :.......................
देवीसिंह मंडावा लिखित पुस्तक "राजपूत शाखाओं का इतिहास" से साभार