Parmar Rajput of Jagdishpur जगदीशपुर और डुमराव के परमार और वीर कुंवरसिंह
भोज के एक वंशज मालवा पर मुस्लिम अधिकार के बाद परिवार सहित गयाजी पिन्डदान को गए। वापस आते इन्होंने शाहबाद जिला बिहार के एक हिस्से पर कब्जा कर लिया। शाहजहाँ बादशाह ने इनके वंशज नारायण मल्ल को भोजपुर जिला जागीर में दे दिया। इन्होंने जगदीशपुर को अपनी राजधानी बनाया। बाद में इन्होंने आरा जिला में डुमराव को अपना केन्द्र बनाया।
कुवंरसिंह- जगदीशपुर के राजा कुंवरसिंह ने वृद्धावस्था में भी 1857 के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम में अंग्रेजों को लोहे के चने चबवा दिए। आप विलक्षण सैनिक नेतृत्व के धनी थे। अस्सी वर्षीय इस बूढ़े शेर ने अंग्रेजों के पाशविक चंगुल से देश को मुक्त कराने का जीवट पूर्ण काय किया उससे उनके दुश्मन अंग्रेज भी आश्चर्य-चकित रह गये। कुंवरसिंह का जन्म सन् 1772 में हुआ था। आप एक दूरदर्शी व सतर्क शासक थे। सन् 1857 मे सारा उत्तरी भारत आपके नेतृत्व में संगठित था। एक ही लक्ष्य था देश की आजादी और अंग्रेजों का सफाया। विद्रोही सेना ने कुंवरसिंह को अपना नेता मान दानपुर से जगदीशपुर की ओर कूच कर दिया। इसके बाद आरा.बीबीगंज व अनेकों स्थान पर कुंवरसिंह ने अग्रेज सेना को लगातार परास्त कर एक कीर्तिमान स्थापित किया। इस बूढ़े शेर ने अग्रेजी तोपखाने और सेना को अपनी देशभक्ति की तलवार से हर मोर्चे पर सिकस्तें दी।
29 अप्रैल को जगदीशपुर के निकट दोनों सेनाओं में युद्ध हुआ कुंवरसिंह को विजय श्री प्राप्त हुई। एक अंग्रेज इतिहासकार ने इसे अंग्रेजों की पूरी तरह बुरी हार माना है। 26 अप्रेल 1858 की यह महान देश भक्त मां से सदा के लिए विदा ले चला गया। ऐसा था यह जगदीशपुर का परमार वीर कुँवरसिंह।
कुंवर देवीसिंह मंडावा लिखित पुस्तक "क्षत्रिय राजवंशों इतिहास" से साभार