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History of the Parmars of Abu आबू के परमारों का इतिहास

 History of the Parmars of Abu आबू के परमारों का इतिहास 

आबू के परमारों की राजधानी चन्द्रावती थी जो एक समृद्ध नगरी थी। इस वंश के अधीन सिरोही के आसपास के इलाके पालनपुर मारवाड़ दांता राज्यों के इलाके थे। आबू के परमारों के शिलालेखों से व ताम्रपत्रों से ज्ञात होता है कि इनके मूल पुरुष का नाम धोमराज या धूमराज था। संवत 1218 के किराडू से प्राप्त शिलालेख में आरम्भ सिन्धराज से है।



सिन्धुराज- आबू का सिन्धुराज मालवे के सिन्धुराज से अलग था। यह प्रतापी राजा था जो मारवाड़ में हुआ था।

उत्पलराज- यह सिन्धुराज का पुत्र था यह किराडू छोड़कर ओसियां नामक गाँव में जा बसा जहाँ सचियाय माता उस पर प्रसन्न हुई । उत्पलराज ने ओसिया में माता का मंदिर बनवाया।

इसके बाद आरण्य राज, कृष्णराज प्रथम, धरणींवराह महिपाल व धन्धुक राजा बने । धन्धुक यह महिपाल का पुत्र था तथा पराक्रमी राजा था इसके लड़के का नाम पूर्णपाल था। भीनमाल के लेख के अनुसार उसके दूसरे पुत्र का नाम कृष्ण राज था। गुजरात के चालुक्य राजा भीमदेव के प्रबल विरोध के कारण उसे आबू छोड़ धारा-राजा भोज (प्रथम) की शरण में जाना पड़ा। किन्तु भीम ने धन्धुक को वापस बुलाकर मेल कर लिया इसके बाद जेष्ठ पुत्र पूर्णपाल उत्तराधिकारी बना।

कृष्ण राजद्वितीय- पूर्णपाल के बाद उसका छोटा भाई कृष्णराज उत्तराधिकारी बना। प्राप्त शिलालेखों के अनुसार उसे महाराजाधिराज लिखा गया है। यह बसंतगढ़,भीनमाल और किराडू । का स्वामी था। संभवतया किराडू की शाखा कृष्णराज से ही चली हो।

कृष्णराज का उत्तराधिकारी ध्रुवमट बना किन्तु यह पता नहीं वह किसका पुत्र था किन्तु वह वीर था। ध्रुवमट के बाद,रामदेव विक्रमसिंह उसका भतीजा यशोधवल उसका पुत्र धारावर्ष उत्तराधिकारी बना।

धारावर्ष- यह यशोधवल का बड़ा पुत्र था। यह वीर शासक था जिसकी वीरता के स्मारक आज भी आबू के आसपास के गाँवों में विद्यमान है। यह वहाँ धार परमार के नाम से प्रसिद्ध है। कहते हैं। उसके भय से कोंकण देश की रानियाँ रोती थी। सम्भवतः वह कोंकण की दूसरी चढ़ाई के वक्त सेना के साथ था। यह गुजरात के राजाओं की सहायतार्थ मुसलमानों से भी लड़ा था। ताजुक मआसिर में लिखा है कि वि.स.1254 में कुतुबुदीन ऐबक ने चढ़ाई की तो रायकर्ण व धारावर्ष सेना लेकर आबू के निकट घाटी में आ पहुँचा पर मुसलमानों की हिम्मत न हुई कि वो हमला करें। अन्त में हिन्दू घाटी से बाहर आये जहाँ भीषण संग्राम में भारी संख्या में हिन्दू मारे गए।

इसके दो रानियाँ थी तथा राजधानी चन्द्रावती थी। वह इतना शक्तिशाली था कि एक ही तीर से तीन भैंसों को मार देता था। अचलेश्वर के मंदिर के बाहर कुण्ड पर उसकी धनुषधारी पाषाण प्रतिमा मौजूद है। इसके छोटे भाई का नाम प्रहलादन था जो बड़ा विद्वान था। इसने प्रहलादनपुर की स्थापना की जिसको पालनपुर के नाम से जाना जाता है। यह पराक्रमी राजा था जिसका सामन्तसिंह से युद्ध हुआ था जिसकी तलवार गुजरात के राजा की रक्षक थी।

धारावर्ष के बाद उसका पुत्र सोमसिंह उसका उत्तराधिकारी बना जो अस्त्र-शस्त्र विद्या में अपने पिता व चाचा के समान निपुण था। सोमसिंह ने अपने जीवन में ही पुत्र कृष्णराज (तृतीय) को युवराज बना दिया था। इसे कान्हड़ भी कहते हैं। यह शैवधर्मी था। कृष्णराज का पुत्र प्रतापसिंह जब उत्तराधिकारी बना तो दुश्मनों से राजधानी चन्द्रावती को पुनः जीता।

कुछ प्राप्त शिलालेखों में महाराजाधिराज आलहणसिंह का नाम मिलता है जो कृष्णराज तृतीय का ज्येष्ठ पुत्र हो सकता है। जिससे प्रतापसिंह ने राज्य प्राप्त किया हो क्योंकि आबू के परमारों की वंशावली प्रतापसिंह तक ही मिलती है। इसके बाद जालौर के चौहान रावलुम्बा ने इस राज्य को समाप्त कर दिया था।

कुंवर देवीसिंह मंडावा लिखित पुस्तक  "क्षत्रिय राजवंशों  इतिहास" से साभार 


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