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History of Kachhvah Rajputs : कछवाहों की कलाप्रियता - 1

 History of Kachhvah Rajputs : कछवाहों की कलाप्रियता

कछवाहा शासक साहित्य-संस्कृति एवं कलाओं के अनन्य प्रेमी थे, उन्होंने शिल्प,स्थापत्य और सांस्कृतिक उत्थान में सदैव अग्रेसरत्व किया है। कछवाहा शासकों द्वारा निर्मित दुर्ग, भवन, मंदिर, सरोवर और कूप वापिकाएँ उनके कला प्रेम की स्मृति-साक्षी हैं।

स्थापत्य कला-जब हम शिल्प-कला की चर्चा करते हैं तो हमें सर्वप्रथम ग्वालियर का ऐतिहासिक दुर्ग दृष्टिगोचर होता हैं । ग्वालियर दुर्ग स्थित सास-बहू का मन्दिर कछवाहा नरेशों की कलाप्रियता का अभिराम उदाहरण हैं। किन्तु यहाँ हम मात्र राजस्थान में आवास से पूर्व - मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश के कला-भवनों की यहां चर्चा न कर केवल राजस्थान तक ही विषय - को सीमित रख रहे है।

राजस्थान में कछवाहा शासकों में पहिले राजा दूलहराय आये थे। राजा दूलहराय द्वारा अपनी कुलदेरी भगवती जमबाय माता के मंदिर के निर्माण का इतिवृत प्राप्त है। उनके पिता राजा सोढ़देव (सुभटदेव) का देहावसान खोह नामक स्थान पर हुआ था। दूलहराया ने खोह में उनकी स्मृति में एक छत्री बनवायी थी। उनके उत्तराधिकारी राजा काकिलदेव ने सामोद के पहाड़ पर दुर्ग बनवाया ओर दूलहराय पर खोह में छत्री का निर्माण करवाया था। उनके पुत्र राजदेव ने खोह के स्थान पर अनपी राजधानी आमेर में स्थापित की और वहाँ आवासीय स्थान-महल आदि बनवाये।

राजदेव के पुत्र राजा किल्हणदेव ने किल्हणगढ़ नामक किले का निर्माण करवाया। उनके उत्तराधिकारी राजा कुंतलदेव हुए। उन्होंने आमेर नगर की गिरिमाला के पीछे ओर की पर्वत श्रृंखला पर कुंतलगढ़ नाम के दुर्ग का निर्माण करवा कर शत्रु आक्रमणों से आमेर स्थान को सुरक्षित किया। राजा जूणसिंह ने टोंक स्थान से उत्तर में 4 कोस की दूरी पर एक गाँव आबाद कर उसका जोला गाँव नाम दिया और वहाँ पर एक तालाब बनावाकर अपनी जन हितैषिता का परिचय दिया। राजा पृथ्वीराज ने अपने शासनकाल में आमेर के पुराने महलों में अपनी राणी बालाबाई के नाम से प्रसिद्ध बालाबाई की साल बनवायी तथा गलता तीर्थ पर पयहारीजी के लिए मन्दिर बनवाया।

आमेर स्थित सुप्रसिद्ध राज-प्रासाद के पृष्ठ भागीय भवन राजा मानसिंह प्रथम द्वारा निर्मित है। दीर्घावधि के अन्तराल के बावजूदद भी उन महलों का स्थापत्य और आकर्षण देश विदेश के दर्शकों तथा कला-प्रेमीयों के लिए आकर्षण का केन्द्र बने हए हैं। जयनगर स्थित रामनिवास बाग, म्यूजियम, सचिवालय, मेडिकल कॉलेज, महारानी कॉलेज और अनेकानेक आधुनिक साज सज्जा युक्त सार्वजनिक भवन,तथा सरिस्का आखेट प्रासाद,अनेक कूप,वापिकाएं, बांध आदि का निर्माण भी कछवाहा शासकों की जनहित रुचि, स्थापत्य प्रेम, कलानुराग और सौन्दर्य-स्नेह के ज्वलंत आदर्श हैं।

आमेर नरेश राजा उदयकर्ण के प्रपौत्र और शेखावाटी जनपद के शासकों के पूर्वज राव शेखा ने बरवाड़ा के स्थन पर अमरसर नामक कस्बा आबाद किया और वहाँ पर एक विशाल भू-स्थलीय दुर्ग चुनवाया। त्रिवेणी तीर्थस्थल के पास की पहाड़ी पर उन्होंने शिखरगढ़ नामक पार्वत्य दुर्ग और गिरि परिकोटा तथा श्री जगदीशजी के मन्दिर का निर्माण करवाया। उनकी रानी ने अमरसर में एक मन्दिर बनवाया था।

राव शेखा के पौत्र राव सूरजमल ने अलवर राज्य के बानसूर कस्बे के पश्चिम उत्तर में दो कि.मी. की दूरी पर बसई नाम का एक सुन्दर सुव्यवस्थित कस्बा बसाया, जिसमें समानान्तर चौड़ाई के पथ, चौपड़ आदि बनाए, वहाँ पर एक मन्दिर का भी निर्माण करवाया था। राव सूरजमल के पुत्रों ने बसई के कल्याणसर तालाब के पास राव सूरजमल पर काले चिकने पत्थर की चार खंभों की एक छत्री बनवाई जिसमें त्रिपट, गुम्बद, विलोम कमल आदि निर्माण कला के उत्तम नमूने हैं।

अमरसर कस्बे का नवीनीकरण और सुव्यवस्थित आकार भी राव सूरजमल ने ही प्रदान किया था। राजा रायसल दरबारी ने वृन्दावन में अपने आराध्यदेव श्री गोपीनाथ के मन्दिर का निर्माण करवा कर उसकी पूजा प्रतिष्ठा के लिए गाँव, भूमि आदि प्रदान किये थे।

राव लूणकर्ण और उनके भाईयों ने अमरसर में कई कूए और समाधि स्मारकों का निर्माण करवाया था। राव मनोहरदास ने मनोहरपुर नामक कस्बे में सुन्दर महल बनवाए और उसके सौन्दर्य की अभिवृद्धि कर प्रसिद्धि प्राप्त की।

इसी प्रकार कछवाहों की अन्य शाखाओं में नाथावत शाखा के शाही मनसबदार रावल बिहारीदास ने अपने ठिकाने के मुख्यावास सामोद में सुदृढ़ दुर्ग और भव्य भवनों का निर्माण करवाया। सामोद के महलों का शिल्प और भित्ति चित्रण अति मनोहर और कलापूर्ण है। खंगारोत शाखा के दूदू ठिकाने का दुर्ग और महल भी भित्ति अलंकारों में नयनाभिराम हैं। शेखावतों

द्वारा निर्मित दुर्गों और किलों की श्रृंखला आड़ाबला पहाड़ की गिरिमालाओं पर एक टक खड़े आज भी उन स्थापत्य और कला-प्रेमियों की कीर्ति कथा लोचनों की भाषा में वर्णन कर रहे हैं। शेखावाटी की छत्रियों,महलों, हवेलियों, तालाब,बावड़ियों और कूओं पर के मरवों के चित्राम वस्तुतः अभिराम है। ये अपने अंगप्रत्यंगों पर रामायण, महाभारत की पौराणिक कथाओं, ढोला मारू, हीर रांझा, मूमल महेन्द्रा आदि लोकिक प्रेम कथाओं और डूंगरसिंह जवाहरसिंह सदृश साहसी वीर चरित्रों की ऐतिहासिक वार्ताओं के बोलते इतिहास हैं। समस्त ढूंढाड कछवाहों द्वारा विनिर्मित दुर्ग,देवालय,छत्रियां,कूप वाटिकाएं,सरोवर और विभिन्न प्रकार के निर्माणों का अद्भुत प्रदेश है।

ढूंढाड की ही भाँति कछवाहों के अलवर राज्य में भी अनेक गढ़, मन्दिर, बावड़ियाँ, छत्रियाँ आदि कछवाहों द्वारा निर्मित हैं।

कुंवर देवीसिंह मंडावा की पुस्तक "राजपूत शाखाओं का इतिहास" से साभार 

क्रमश:....

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