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Chol King Rajendra 1st : चोल राजा राजेन्द्र (प्रथम)

 Chol King Rajendra 1st : चोल राजा राजेन्द्र (प्रथम)

राजराजा की मृत्यु के बाद ई. 1018 में राजेन्द्र चौलवंश की गद्दी पर बैठा, किन्तु उसका वास्तविक राज्यकाल ई. 1012 से ही आरम्भ हो जाता है जब वह युवराज घोषित किया गया था। उसी समय से उसे राजकार्यों का पूरा अनुभव था। राजेन्द्र एक योग्य पिता की योग्य संतान था। राजेन्द्र ने चौलवंश की कीर्ति को महानता पर पहुँचाया। दक्षिण में इसने पांड्यों. चेरा व सिलोन राज्यों को परास्त कर अपने अधीन कर लिया। उसने चालुक्यों को अनेक युद्धों में परास्त किया, पर उन पर स्थाई विजय हासिल नहीं कर पाया।

उत्तर में राजेन्द्र के दो सैनिक अभियान महत्त्वपूर्ण हैं। जिनमें पहला है- पूर्वीतट के कलिंग, ओडिरा (ओरिसा) व दक्षिण कौसल से बंगाल का अभियान। इसने दक्षिण पश्चिम बंगाल के तीन राजाओं के अलावा महान पालराजा महिपाल को परास्त किया। यह अभियान गंगातट तक जारी रहा। इसका उद्देश्य गंगा का पवित्र जल लाना था, जो पराजित राजाओं के कंधों पर लादकर लाया गया। यह मात्र आक्रामक अभियान था, इससे चौल राज्य की सीमाओं में किसी प्रकार की वृद्धि नहीं हुई। 

राजेन्द्र का नौसैनिक अभियान : राजेन्द्र का दूसरा साहसिक नौसैनिक अभियान भारतीय इतिहास में अपना विशिष्ट महत्त्व रखता है। इस अभियान का उद्देश्य शैलेन्द्र राजवंश पर विजय प्राप्त करना था। शैलेन्द्र का राज्य जावा, सुमात्रा, मलाया व उसके पड़ौसी द्वीपों पर था। शैलेन्द्र राजवंश, राजेन्द्र के पिता राजराजा का मित्र था, किन्तु राजेन्द्र का इस पर आक्रमण अज्ञात है। राजेन्द्र के नौसैनिक बेड़े ने बंगाल की खाड़ी को पारकर सुमात्रा के सामंतों व जावा, मलाया के पठार के काथा या कहरम (कोडाह) जो शैलेन्द्र के प्रमुख आधार थे, पर विजय प्राप्त की। राजेन्द्र महान की विजय-वैजयन्ती गंगा के किनारे से सिलोन तक तथा सुदूर द्वीप राज्यों जावा, सुमात्रा व मलय द्वीपों तक फहराने लगी। उस समय किसी भी राजा के पास इतनी शक्तिशाली नौसेना नहीं थी।

राजेन्द्र चौल वास्तव में भारतीय इतिहास में महान विजेता था, जो वास्तव में कन्डरगोन्डा और गनगईकोंडा की उपाधि धारण करने का अधिकारी राजा था। उसने कोंडासोलापुरम नाम से नई राजधानी की स्थापना की। उसकी राजधानी भव्य भवनों एवं कलात्मक मंदिरों से सुशोभित थी। राजेन्द्र का 16 मील लम्बा सिंचाई कुण्ड-निर्माण महत्त्वपूर्ण उपलब्धि थी। राजेन्द्र चौल ने वैदिक साहित्य की विभिन्न शाखाओं के अध्ययन हेतु एक विद्यालय की स्थापना की। राजेन्द्र चौल विजेता के साथ ही कला व शिक्षा का सरक्षक भी था। 

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