Chol King Koltug 1st. : कोलतुग प्रथम
पूर्वी चालुक्य राजा राजराजा का पुत्र अपने रक्त संबंधों के आधार पर स्वयं को चौल वंश का उत्तराधिकारी मानता था। उसके पिता की माँ राजराजा महान की लड़की थी। उसकी माता राजेन्द्र गनाई कोंडा चौल की पुत्री थी। वह स्वंय कोप्पाम विजेता चौल राजा राजेन्द्र की पुत्री को ब्याहा था। इन्हीं सब आधारों पर वह स्वयं को चौलवंश का उत्तराधिकारी मानता था। उसने विजय राजेन्द्र के पुत्र अधिराजेन्द्र के विद्रोह को कुचल कर ई. 1070 में चौल सिंहासन पर दृढ़ता से अधिकार कर लिया था।
कोलतुंग वीर एवं महत्तवाकांक्षी शासक था। उसने अपने ई. 1070 से ई. 1118 तक के सुदीर्घशासन में चालुक्य आक्रमणों को सफलतापूर्वक दबा दिया, जिसमें राजा विक्रमादित्य छठे का विद्रोह भी शमिल था, किन्तु उसके राज्यकाल में सिलोन स्वतंत्र हो गया था।
कोलतुंग ने अपने पुत्र को वेन्जी का राज्यपाल नियुक्त किया तथा कलिंग के अनन्तवर्मा को पराजित किया। 1118 में विक्रमादित्य छठे ने वेन्जी पर अधिकार कर लिया। उसी समय होयसल वंश का अभ्युदय चौल राज्य के लिए घातक सिद्ध हुआ। होयसलों ने चौलों को कावेरी नदी के पास खदेड़ कर मैसूर के पठार पर अपना राज्य स्थापित कर लिया। कोलतुंग के राज्यकाल में दो बार भू-सर्वेक्षण कराया गया था।
कोलतुंग के बाद के 100 वर्षों तक ई. 1216 तक उसके उत्तराधिकारियों का शासनकाल राजनैतिक शून्यता का काल था, जिसमें अनेक सामंत राज्यों का उदय हुआ। रानाडू के तेलगू, चोड, बाना व कादव प्रमुखत: उभरे तथा होयसलों, पांड्यों व कलिंग के पूर्वी संघ व काकतियों की शक्ति में तेजी से वृद्धि हई। इन घटनाओं का प्रभाव राजेन्द्र तृतीय के शासनकाल (ई. 1216 से ई. 1246) में स्पष्ट दृष्टिगोचर होने लगा था। वह पांड्यों द्वारा कई बार पराजित किया गया और उसकी राजधानी पर भी पांड्यों ने अधिकार कर लिया। होयसलों ने भी शक्तिशाली राज्य की स्थापना की ली।
एक अवसर पर चौलों के सामंत ने ही चौल राजा को कैद कर लिया, जो इस शक्तिशाली राज्य के पतन का सूचक था। राजेन्द्र तृतीय ने पांड्यों के विरुद्ध आंशिक सफलता अर्जित की, किन्तु गनपति काकतिया ने ई.1250 में कांची पर अधिकार कर पतनोन्मुख चौलवंश को करारा आघात पहुँचाया। जटवर्मन सुरेन्द्र पांड्या ने असमंजस की स्थिति का लाभ उठाते हुए उत्तर की ओर प्रस्थान किया तथा चौलों, होयसलों व काकतियों को पराजित कर नैलोर पर विजय प्राप्त कर ली। अब राजेन्द्र पांड्यों का मात्र सामंत ही रह गया। चौल साम्राज्य का मलिक नबी काफर के ई. 1310 के आक्रमण ने अन्त कर दिया, जिससे चौल साम्राज्य सदा के लिए समाप्त हो गया।