महावीरसिंह राठौड़
अमर शहीद भगत सिंह के नाम से हर कोई परिचित है
लेकिन कितने ही ऐसे शहीद हैं जिनको सम्मान तो दूर की बात है उनके नाम तक
से कोई परिचित नहीं। ऐसा ही एक नाम
है अमर शहीद महावीर सिंह राठौड. का। राजपूतों द्वारा स्वतंत्रता संग्राम में
हिस्सा नहीं लेने का आरोप लगाने वालों के गाल पर महावीरसिंह राठौड़ का नाम एक तमाचा
है। विडंबना देखिये देश पर सर्वस्व लुटाने
वाले महावीरसिंह राठौड़ को आज कोई नहीं जानता
महावीर सिंह राठौड. नाम है उस व्यक्ति का जिसने
भगत सिंह, बटुकेश्वर दत्त तथा दुर्गा भाभी को
लाहौर से निकलने मं मदद की थी। इसी दौरान भगत सिंह ने अपना ट्रंक महावीर सिंह
राठौड. के पास छोड. दिया था। जिसे उनके
परिवार ने सरकार को लौटा दिया।
भगत सिंह की मदद करने या अंग्रेजों के शब्दों
में कहें तो ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ साजिश रचने के जुर्म में महावीर सिंह को सजा सुनाई
गई और काला पानी (अंडमान ) भेजा गया। 12 मई 1933 को स्वतंत्रता सेनानियों ने जेल
में कैदियों के साथ हो रही बदसलूकी तथा बदइंतजामी के लिये भूख हड़ताल शुरू कर दी। अंग्रेजो
ने भूख हड.ताल तोड.ने की बहुत कोशिश की लेकिन उनका हर प्रयास बेअसर रहा। तब
उन्होंने कैदियों को जबरदस्ती खाना खिलाने का प्रयास शुरू किया गया। कहते हैं
महावीर सिंह को जबरदस्ती दूध पिलाया गया जो उनकी आँतों में चला गया जिससे उनकी
मृत्यु हो गयी। महावीर सिंह के साथ मोहन किशोर एवं नमोदास ने भी अपनी शहादत दी।
अंग्रेजों ने शहीदों के शवों को उनके घरवालों तक को नहीं सौपा। शवों को पत्थर से बांधकर समुद्र में फैंक दिया गया।
स्वतंत्रता आंदोलन की तरफ महावीर सिंह का
झुकाव कक्षा 6 में ही हो गया था। राठौड.
ने अपनी किशोरावस्था में ही अपनी राष्ट्रवादी भावनाओं को प्रदर्शित करना शुरू कर
दिया था जब अंग्रेजों द्वारा आयोजित अमन सभा में किशोर उम्र के राठौड. ने महात्मा
गांधी की जय के नारे लगाये थे। इसके लिये
उन्हें सजा भी दी गयी थी पर ये सजा मजबूत इरादों वाले राष्ट्रवाद की भावना से
ओतप्रोत क्षत्रिय किशोर महावीर सिंह राठौड. को डिगा नहीं सकी बल्कि देश प्रेम की
भावना तथा देश के लिये कुछ कर गुजरने की भावना और बलवती होती चली गयी। कानपूर के
डीएवी कॉलेज, जो उस समय क्रांतिकारी गतिविधियों का
बड.ा केंद्र था, में पढते समय युवा राठौड. को जैसे अपने
जीवन की राह ही मिल गयी। उन्होंने तय कर
लिया था कि अब जीवन में क्या करना है।
कहते हैं महावीर सिंह के प्रारम्भिक जीवन पर उनकी रिश्तेदार खेतल कँवर का बड़ा प्रभाव था
जिन्होंने उन्हें देशप्रेम तथा राष्ट्र के लिये कुछ कर गुजरने की प्रेरणा दी थी ।
महावीर सिंह की देशभक्ति की कीमत उनके घरवालों
को भी चुकानी पड़ी। अंग्रेज सरकार उनके घर
अक्सर दबिश डालती थी। परिवार को 9 बार
अपना घर बदलना पड़ा।