धार की रानी द्रोपदी बाई
धार मध्य भारत में एक छोटा सा राज्य था. जिसका क्षेत्रफल 25 वर्ग मील
था. राज्य की राजधानी धार में थी. 22 मई 1857 को धार के राजा की हैजे से मृत्यु हो
गई. मृत्यु पूर्व राजा ने अपने छोटे भाई आनन्दराव बालासाहब को गोद ले लिया था. उस
समय बाला साहब की उम्र केवल 13 वर्ष की थी. महाराजा की बड़ी रानी द्रोपदी बाई ने
अल्प वयस्क राजा का प्रति-संरक्षक घोषित कर दिया था. 28 सितम्बर 1857 को अंग्रेज
सरकार ने अल्प-वयस्क राजा आनन्दराव बाला साहब को धार का राजा स्वीकार कर लिया.
अल्प-वयस्क राजा को अंग्रेजों ने स्वीकार तो कर लिया था, किन्तु रानी द्रोपदी बाई
से अंग्रेज असंतुष्ट थे और उनके कार्यों में विध्न डालते थे.
सन 1857 के स्वाधीनता संग्राम में रानी द्रोपदी बाई ने महत्त्वपूर्ण
सहयोग दिया अत: उनका उस महा संग्राम में उनका विशिष्ट स्थान है. रानी द्रोपदी बाई
के राज्य संरक्षण का काम संभालते हुए ही समस्त प्रदेश में क्रांति की लपटें
प्रचण्ड रूप से फ़ैल गई.
रानी द्रोपदी बाई ने रामचंद्र बापू जी को अपना दीवान नियुक्त किया.
अंग्रेज अधिकारी यह जानते थे कि धार का राज दरबार उनका सहयोग करेगा. परन्तु धार की
रानी द्रोपदी बाई व दीवान रामचंद्र बापूजी ने अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष की
घोषणा कर दी. राज्य का दायित्व संभालते ही रानी ने अपनी सेना में अश्व-अफगान
सैनिकों की भर्ती करना आरम्भ कर दिया था. अंग्रेज देशी राज्यों में वेतनभोगी
सैनिकों की नियुक्ति के विरुद्ध थे. रानी द्रोपदी बाई ने अंग्रेजों की इच्छा के
विरुद्ध सैनिक भर्ती किये. रानी द्रोपदी बाई के भाई भीमराव भौंसले भी अंग्रेजों के
विरुद्ध हो गये. अमझेरा के राजा बख्तावरसिंह जी ने स्वाधीनता की घोषणा कर
अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष करना प्रारम्भ कर दिया था. उसी समय अमझेरा के सैनिकों
से मिलकर रानी द्रोपदी बाई ने सरदारपुर पर आक्रमण कर दिया. सरदारपुर छावनी
अंग्रेजों के अधीन थी. धार की सेना सरदारपुर से लूट का सामान लेकर धार लौट आई.
रानी द्रोपदी बाई के भाई भीमराव ने उनका स्वागत किया. इस लूट में धार सैनिक तीन
तोपें भी लूटकर ले आये थे. रानी द्रोपदी बाई ने उन्हें राजमहल में रखवा दिया.
अगस्त 1857 में क्रांतिकारियों ने रानी द्रोपदी बाई के नेतृत्व में धार किले के
ऊपर स्वाधीनता का झण्डा फहरा दिया.
धार की राजमाता द्रोपदी बाई एवं राजदरबार के विद्रोह के कारण कर्नल
ड्यूरेन्ड बहुत घबरा गया. उसे सूचना मिली कि उसके पास हैदराबाद, नागपुर, सूरत,
उज्जैन एवं ग्वालियर से दशहरे के बाद क्रांतिकारियों की सेनाओं द्वारा समस्त मालवा
प्रान्त जीतकर अपने अधिकार में कर लेगी. नाना साहब उसी क्षेत्र में मौजूद थे.
अंग्रेजों ने 12 अक्टूबर 1857 को कुछ सेना मन्दसौर की तरफ भेजी और बड़ी सेना के साथ
19 अक्टूबर 1857 को धार पर आक्रमण करने के लिए भेजी. 22 अक्टूबर 1857 को अंग्रेजी
सेना धार पहुंची. अंग्रेजी सेना ने धार के किले को चारों ओर से घेर लिया. धार का
किला शहर के बाहर स्थित था. यह किला मैदान से 30 फिट उंचाई पर लाल पत्थर से बना हुआ
था. किले के चारों ओर 14 गोल और 2 चौकोर बुर्ज बने हुए थे. अंग्रेज सेनाधिकारियों
को विश्वास था कि क्रांतिकारी शीघ्र आत्म-समर्पण कर देंगे. किन्तु अरब और मकवानी
सैनिकों ने अगाध विश्वास के साथ क्रांतिकारी सैनिकों के साथ वीरता का परिचय दिया.
अंग्रेज और क्रांतिकारी सेना के साथ 24 अक्टूबर 1857 तक युद्ध चलता रहा.
क्रांतिकारियों ने किले के दक्षिण की ओर पहाड़ी पर तीन पीतल की तोपें लगा रखी थी.
अंग्रेजी सेना किले पर लगातार गोले बरसा रही थी. रानी द्रोपदी बाई के नाम से
क्रांतिकारियों ने बाहरी राज्यों से सहायता प्राप्त करने का प्रयास किया.
अंग्रेजों की तोपों के गोले लगने से किले की दीवार का कुछ भाग धराशायी हो गया और
अंग्रेजी सेना किले के अन्दर घुस गई. क्रांतिकारी सैनिक गुप्त मार्ग से बच कर निकल
गये. धार किले की दीवारों पर गोलों के निशान तथा क्रांतिकारियों का गुप्त मार्ग आज
भी दिखाई देता है.
कर्नल ड्यूरेन्ड ने धार किले पर अधिकार करने के पश्चात् किले को
तहस-नहस कर दिया. धार राज्य को जब्त कर लिया गया. दीवान रामचंद्र बापूजी तथा
क्रांतिकारियों को बन्दी बनाकर मण्डलेश्वर कारागार में भेज दिया गया. रानी द्रोपदी
बाई क्रांतिकारियों के साथ किले से निकलकर गुप्त ठिकाने की ओर चली गई.
इंग्लैण्ड की महारानी विक्टोरिया की घोषणा के बाद कम्पनी का राज्य
समाप्त कर गया और महारानी विक्टोरिया के नेतृत्व में ब्रिटिश राज्य कायम किया गया.
सन 1860 में ब्रिटिश पार्लियामेंट में धार के राजा आनन्दराव बाला साहब के वयस्क
होने का मामला उठाया गया. धार का राज्य राजा के वयस्क हो जाने से उन्हें वापस दे
दिया गया था.
रानी द्रोपदी बाई के नाम से बहुत कम ही लोग परिचित होंगे, परन्तु
इतिहास के पन्नों में रानी द्रोपदी बाई का नाम चमकते नक्षत्रों की भाँती है.