History of Rajputs : राजपूतों की उत्पत्ति को विभिन्न विदेशी व वामपंथी इतिहासकारों ने भ्रम फैलाया है | उनके द्वारा फैलाये भ्रम के निवारण हेतु भारत के कई इतिहासकारों ने सप्रमाण बहुत कुछ लिखा है | राजस्थान के सुप्रसिद्ध इतिहासकार रायबहादुर गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने अपनी पुस्तक "राजपूताने का प्राचीन इतिहास" में अपने विस्तृत शोध के माध्यम में इस भ्रम से पूरी तरह से पर्दा उठाया है | अपनी पुस्तक में इतिहासकार ओझा जी लिखते हैं -
"यूरोपियन
विद्वानों की शोधक बुद्धि वास्तव में प्रशंसनीय है, परन्तु उनमें गतानुगत वृत्ति एवं प्रमाणशून्य
मनमानी कल्पना करने की रुचि यहां तक बढ़ गई है कि कभी-कभी उनकी शोधक बुद्धि हमारे
प्राचीन इतिहास की श्रृंखला मिलाने में लाभ की अपेक्षा अधिक हानि पहुंचाने वाली हो
जाती है । आज तक कोई विद्वान् सप्रमाण यह नहीं बतला सका कि शक, कुशान या हूणों से अमुक-अमुक राजपूतवंशों की
उत्पत्ति हुई। एक समय राजपूतों को 'गुजर'
मानने का प्रवाह ऐसे
वेग से चला कि कई विद्वानों ने चावड़ा, प्रतिहार,
परमार, चौहान, तंवर,
सोलंकी, कछवाहा आदि राजपूतों का ‘गुजर' होना बतलाने के सम्बन्ध में कई लेख लिख डाले, परन्तु अपनी मनमानी कल्पना की घुड़दौड़ में
किसी ने इन बातों का तनिक भी विचार न किया कि प्राचीन शिलालेख आदि में उनके
वंश-परिचय के विषय में क्या लिखा है|
दूसरे
समकालीन राजवंश उस विषय में क्या मानते थे, हुएन्त्संग ने उनको किस वंश का बतलाया है और यही कहते गये कि ये तो पीछे से
अपने को क्षत्रिय मानने लग गये हैं। जब तक सप्रमाण यह न बताया जा सके कि अमुक
राजपूत जाति अमुक गूजर वंश से निकली तब तक ऐसे प्रमाणरहित काल्पनिक कथन स्वीकार
नहीं किये जा सकते।
कर्नल टॉड ने तो अपना ग्रंथ सौ वर्ष पूर्व रचा, उस समय भारत में प्राचीन शोध का प्रारम्भ ही हुआ था और प्राचीन शिलालेखादि का ठीक-ठीक पढ़ा जाना आरम्भ भी नहीं हुआ था, अतएव टॉड का कथन तो अधिकतर काल्पनिक ही कहा जा सकता है, परन्तु इस बीसवी शताब्दी के लेखक मि. विन्सेंट स्मिथ ने भी कोई मूल प्रमाण उदधृत कर यह नहीं बतलाया कि अमुक-अमुक राजपूत जातियां अमुक बाहरी जाति से निकली हैं। केवल अनुमान के आधार पर ही अपना लेख लिखा, इतना ही नहीं किन्तु यह भी स्पष्ट रूप से नहीं बतलाया जा सका कि राजपूत जाति की उत्पत्ति शक, कुशन और हण इन तीन में से किससे हई। उक्त महाशय को साथ-साथ यह भी लिखना पड़ा कि ‘निस्सन्देह शक और कुशनवंशी राजाओं ने जब हिन्दू धर्म स्वीकार कर लिया तब से हिन्दू जाति की प्रथा के अनुसार वे क्षत्रियों में मिला लिये गये, परन्तु जो कुछ अब तक जाना गया उससे यही ज्ञात होता है कि वे बहुत काल पीछे हिन्दुओं में मिलाये गये हों, लेकिन इसके लिए हमारे पास कोई प्रमाण नहीं है।”
अब हम सबसे पहले राजपूतों को क्षत्रिय न मानने वालों की शक जाति सम्बन्धी मुख्य दलील की जांच करते हैं :-
'मनुस्मृति' में लिखा है-'पौंड्रक,चोड,द्रविड,कांबोज,
यवन,शक, पारद,
पल्हव, चीन, किराल,
दरद और खश ये सब
क्षत्रिय जातियां थी,
परन्तु शनैः शनैः
क्रियालोप होने से वृषल (विधर्मी, धर्मभ्रष्ट) हो गई। इस कथन का अभिप्राय यही है
कि वैदिक धर्म को छोड़कर अन्य (बौद्ध आदि) धर्मी के अनुयायी हो जाने के कारण वैदिक
धर्म के आचार्यों ने उनकी गणना विधर्मियों (धर्म भ्रष्टों) में की। Rajput History, History of Rajputs, Rajputon ki Utpatti, Rajput, Rajputana