पिछले भाग से आगे .... पुराणों से पाया जाता हैं—“इक्ष्वाकुवंशी राजा वृक के पुत्र बाहु (बाहुक) के राज्य पर हैहयों और तालजंघों (तालजंघ के वंशजों) ने आक्रमण किया, जिससे वह पराजित होकर अपनी राणियों सहित वन में जा रहा जहां और्य ऋषि के आश्रम में उसका देहांत हुआ। और्व ने बाहु के पुत्र सगर को वेदादि सब शास्त्र पढ़ाये, अस्त्रविद्या की शिक्षा दी और विशेषकर भार्गव नामक अग्न्यस्त्र का प्रयोग सिखलाया। एक दिन उस (सगर) ने अपनी माता से ऋषि के आश्रम में निवास करने का कारण जानने पर क्रुद्ध होकर अपना पैतृक राज्य छीन लेने और हैहयों तथा तालजंघों को नष्ट करने का प्रण किया।
फिर
उसने बहधा सब हैहयों को नष्ट किया और वह शक, यवन,
कांबोज तथा परहवों को
भी (जो बाहु का राज्य छीनने में हैहय आदि के सहायक हुए थे) नष्ट कर देता, परन्तु उन्होंने अपनी रक्षा के लिए उसके
कुलगुरु वशिष्ठ की शरण ली,
तब गुरु ने सगर को रोका
और कहा कि अब तू उनका पीछा मत कर, मैंने तेरी प्रतिज्ञा पालन के निमित्त उनको द्विजाति से च्युत कर दिया है ।
सगर ने गुरु का कथन स्वीकार कर उन जीती हुई जातियों में से यवनों को सारा सिर
मुंडवाने,
शकों को आधा मुंडवाने, पारदों को केश बढ़ाये रखना और पल्हवों को
दाढ़ी रखने की आज्ञा दी। उनको तथा अन्य क्षत्रिय जातियों को वषटकार (अग्नि में
आहुति देने का शब्द) और वेद के पठन से विमुख किया। इस प्रकार धर्म (वैदिक धर्म) से
च्युत होने तथा ब्राह्मणों का संसर्ग छूट जाने के कारण ये भिन्न-भिन्न जातियां
म्लेच्छ हो गई।"
पुराणों
के इस कथन से स्पष्ट है कि शक आदि उपर्युक्त जातियां क्षत्रिय थी और राजा सगर के
समय में भी वे विद्यमान थी। पीछे से बौद्ध आदि धर्म स्वीकार करने पर वैदिक मतवालों
ने उनकी गणना म्लेच्छों में कर ली । भारतवर्ष में
जब बौद्धधर्म की प्रबलता हुई उस समय ब्राह्मणादि अनेक लोग बौद्ध हो गये तो उनकी भी
गणना धर्मद्वेष के कारण ब्राह्मणों ने अपनी स्मृतियों में शूद्रों में कर दी। इतना
ही नहीं,
किन्तु अंग, बंग, कलिंग,
सुराष्ट्र, मगध आदि बौद्धप्राय देशों में यात्रा के
अतिरिक्त जाने पर पुनः संस्कार करने का विधान तक किया था। फिर बौद्ध धर्म की अवनित
होने पर वे ही बौद्ध पीछे वेदधर्मानुयायियों में मिलते गये।
चंद्र
वंश के सूल पुरुष पुरूरवा का चौथा वंशधर ययाति था। उसके पांच पुत्र यदु, तुर्वसु, द्रुह्यु,
अनु और पुरु हुए।
द्रुयु का पांचवां वंशधर गंधार हुआ, जिसके नाम से उसका देश गांधार कहलाया, वहां के घोड़े उत्तम होते हैं। गंधार का पांचवां वंशज प्रचेता हुआ। मत्स्य, विष्णु और भागवत पुराण में लिखा है-“प्रचेता के सौ (बहुत से) पुत्र हुए, जो सब उत्तर (भारतवर्ष के उत्तर) के म्लेच्छ
देशों के राजा हुए । पंतजलि के महाभाष्य के अनुसार भी आर्यावर्त के बाहर उत्तरी
प्रदेशों में आर्यों की बस्तियां थी।
शकादि बाहरी आर्य जातियों के सम्बन्ध में हमारे यहां ऊपर लिखे अनुसार उल्लेख मिलते हैं। अब हमें यह देखना चाहिये कि यूरोप के प्राचीन काल के इतिहास-लेखक शकों के विषय में क्या लिखते हैं :-
'एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका' में लिखा है-“ज्योस नामक विद्वान का कथन है कि मुझे कई
प्रमाण ऐसे मिले हैं,
जिनके अनुसार शकों का
आर्य होना निश्चित है। इस कथन की साक्षी हिरोडॉटस देता है कि सीथियन (शक) और
सौटियन एक ही भाषा बोलते थे और सौटियन के निसन्देह आर्य होने की साक्षी प्राचीन
ग्रंथकार देते हैं। स्टेपी के सारे प्रदेशों पर आक्सस और जेहूं नदियों
से हंगेरिया के पुजटास तक पहले आर्यों की एक शाखा का अधिकार था।
शकों
के देवता भी आर्यों के देवताओं से मिलते हुए थे। उनकी सबसे बड़ी देवी तबीती
(अन्नपूर्णा) थी,
दूसरा देवता पपीना
(पाकशासन,
इन्द्र) और उसकी स्त्री
अपिया (पृथ्वी) थी। इनके अतिरिक्त सूर्य आदि दूसरे देवता भी पूजे जाते थे। राजवंशी
शक समुद्र के श्वेता (वरुण) की पूजा करते थे। वे ठीक ईरानी प्रथा के अनुसार
देवताओं की मूर्तियां और मंदिर नहीं बनाते, किंतु एक खङ्ग को बड़ी वेदी पर रखकर प्रतिवर्ष उसको भेड़ आदि की बलि चढ़ाते
थे। शक लोग लड़ाई के समय घोड़े पर सवार होते और धनुष बाण रखते थे।
ऊपर
उद्धृत किये हुए मनुस्मृति,
पुराण एवं प्राचीन
यूरोपियन इतिहासलेखकों के प्रमाणों से स्पष्ट है कि शक जाति आर्यों से भिन्न नहीं, किंतु उन्हीं की एक शाखा थी। यदि यह प्रश्न
किया जाय कि वे आर्य थे तो पीछे से वे पुराणों आदि में वृषल (विधर्मी, धर्मभ्रष्ट) क्यों कहलाये? तो इसका उत्तर यही है कि उन्होंने वैदिक धर्म
से अलग होकर बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया था। धर्मभेद के कारण बौद्धों और
ब्राह्मणों में परस्पर परम शत्रुता रही, इसी से जैसे ईरानियों ने शक शब्द का अर्थ 'सग' (कुत्ता) बतलाया वैसे ही ब्राह्मणों ने उनका क्षत्रिय होना स्वीकार करते हुए
भी उनको वृषल (धर्मभ्रष्ट) ठहराया, किंतु शक और कुशनवंशियों के सिक्कों, शिलालेखादि एवं प्राचीन ग्रंथों में मिलने वाले उनके वर्णन को देखते हए यही
कहना पडता है कि वे जंगली और वषल नहीं किंतु आर्य ही थे और आर्यों की सी सभ्यता
रखते थे।